व्यंग्य | बारात की मौज, मज़ा सर्कस का भी

“अरे बेटा बरुन जल्दी करो, लेट है गये हैं.” दादाजी ने स्कूटर से उतर कर तेजी से क़दम बढ़ाते हुए कहा.
बहोड़ापुर से सागरताल की तरफ़ जाने वाली सड़क पर आज जाम लगा हुआ था. उस सड़क पर कतार से ईडन-गार्डन बने थे, जहाँ हर सहालग में अनेक आदम और हब्बा ऑरिजिनल सिन करने के लिये एकत्र होते थे. इन ईडन-गार्डन्स को मैरिज-गार्डन के नाम से जाना जाता था.
“बस दादाजी पहुँच गये.” वरुण ने दादाजी के साथ उस भव्य प्रवेश द्वार की ओर बढ़ते हुए उत्तर दिया. दोनों मुख्य द्वार से अंदर की तरफ़ बढ़े.
“बाह रे, सजावट तो भौत नीकी करी है. जे कौन है, पपोली की सबसे छोटी मौड़ी है?” दादाजी ने गलियारे में सजी-धजी खड़ी एक लड़की की ओर देख कर पूछा.
“नहीं बाबा, ये वेलकम मौड़ी हैं. मतलब वेलकम गर्ल हैं.”
“का हैं?”
“आजकल स्वागत करने के लिये लड़कियां रखी जाती हैं, वो हैं.” वरुण ने बताया.
“स्वागत करबे के लैं लड़कियां रखी जाती हैं?” दादाजी ने वरुण का वक्तव्य दोहराया और ठहर गये. “औज्जे गंगाजल छिड़क रई है का?”
“नहीं कुछ इत्र-वित्र टाइप का है.”
“ऐ बिटिया, पपोली कहाँ है?” दादाजी ने उस वेलकम गर्ल के पास जाकर पूछा. वह सकपका गई.
वरुण ने दादाजी को बाँह पकड़ कर वापस खींचा, “अरे उसे नहीं पता. वो किराए पर आई है, ईवेंट मैनेजमेंट वालों ने रखा है. अंदर चलो, अंदर मिलेंगे सब.”

थोड़ा और आगे बढ़े तो थ्रीपीस सूट पहने एक व्यक्ति सामने आ गया जिसके साथ एक वेटर था. उसने दादाजी को प्रणाम किया और विनम्रतापूर्वक निवेदन किया कि वे सूप ग्रहण करें. वह अपने हाथों से सूप दे रहा था.
“बाह, अच्छी ख़ातिर है!” दादाजी ने कहा और फिर धीरे से वरुण के कान में पूछा, “जे का पपोली को बड़ो दामाद है?”
“अरे ये कैटरिंग वाला है!” वरुण ने झल्ला कर कहा.
“बेटा बरुन लगत है हम गलत ब्याह में आय गए हैं. पपोली को कोई घर वालो नहीं दिख रहो है. जे कोई और कौ ब्याह है.” दादा जी बोल ही रहे थे कि तभी उन्हें कोई दिखा और उन्होंने ज़ोर से आवाज़ दी, “अरे बेटा लुल्ली, इतें आ!” लुल्ली भाग कर दादा जी के पास आ गया. लुल्ली का व्यक्तित्व लेख के साथ स्वतः स्पष्ट होता जाएगा. “लुल्ली, जे पपोली की मौड़ी की सादी है, कि काउ गलत जगै पै आय गए हैं?”
“दद्दा!” लुल्ली ने शरमाते हुए कहा, “अब हम बड़े है गए हैं. हमें लुल्ली नईं, लवलेस बुलाओ करौ.”
“चुप्प!” दादा जी ने लुल्ली को हड़काया, “देख के आ, जे पपोली की सादी है या काउ और की. ध्यान से देखिये!”
“दद्दा सादी तो पपोली कक्का के याँ की है. बाहर लिखी भई है- लूटमारिया परिवार आपका सुआगत कत्ता है.” लुल्ली ने बताया.
“लूटमारिया नहीं, लटमारिया.” वरुण ने सुधार किया.
“अरे काए के लटमारिया? लूटमारिया ही हैं ससुर. इनके खानदान के सब किस्सा पता हैं हमें. जाकौ बाप दरोगा हो. बिन्ने ही पपोली ससुर पंचायत में लगबाय दये. जुगाड़ सैं बीडीओ बन गओ.” दादा जी ने लुल्ली का समर्थन किया. “बरुन फ़ोन तौ लगा पपोली को, पूछ कितें हैं?”
वरुण ने फोन लगाया और बात कर के दादाजी से कहा, “पपोली बाबा कह रहे हैं कि आप लोग भोजन ग्रहण कर लो, हमें समय लगेगा. हमारा पूरा ख़ानदान अभी ब्यूटी पार्लर आया हुआ है.”
“पूरौ खानदान? चौहत्तर की उमर में पपोली हू गए हैं चेहरा में पुट्टी भरबायबे?”
“दद्दा मोए का लगत,” लुल्ली ने शरमाते हुए कहा, “जैसे ब्याह के बाद माँएं पूजबे, सती पूजबे, कुआं पूजबे जात. बैसई अब ब्याह सैं पैलैं बूटी पाल्लल पूजबे जात. अपऐं किर्रु पंडित ने तौ हरिया सैं एक सौ एक धराय लये पाल्लल पूजबे के.”
“अरे किर्रु पंडित कौ बस चलै तो बे पंडाल के पीछें जाय कैं पउआ पूजन हू करबाय दें.” दादाजी ने कहा.
“पैलें सतिया बनायगौ बोतल पै, फिर भजिया छिडकैगो.” लुल्ली ने किर्रु पंडित की पउआ पूजन की विधि बताई और पूछा, “दद्दा मैं हू बूटी पाल्लल है आऊं?”
“चुप्प! तू तौ इत्तौ हुनरमंद है कि अपनौ पाल्लर डाल लै. मेहंदी लगायबौ, चोटी बनायबौ, सब तौ आत तोए.” यह कह कर दादाजी थोड़ा आगे बढ़े तो अचानक कुछ देख कर चौंक गए. आसमान की ओर इशारा कर के वरुण से बोले, “जे क्या उड़ रहा है?”
“ये ड्रोन है दादा जी. इस-से वीडियो बनाते हैं.” वरुण ने बताया.
“बाह! द्रोणाचार्य के नाम पर इसका जे नाम धरा होगा.” दादाजी पक्के सनातनी थे. पक्का सनातनी वही है जो माने कि विश्व में जो कुछ भी है, भारत की वजह से है.
“अरे दादाजी आप भी कहीं का कहीं जोड़ देते हो. ड्रोन अंग्रेजी का शब्द है. आपको तो लगता है कि सब कुछ इंडिया ने ही किया है दुनिया में.”
“अरे लला, द्रोण सैं ही जे डोंगी, दर्रा सब सब्द बने हैं. अंग्रेजी कौ ड्रेन और हिंदी कौ द्रोणी एकई बात है. सब यहीं से गओ है दुनिया में. विस्वगुरु हैं हम.”

वरुण, दादाजी की बात काटना चाहता था. वह विश्वगुरु वाली बात से बहुत चिढ़ता था. परन्तु द्रोण वाली बात काटने के लिये उसके पास कोई तर्क नही था. हालाँकि उसे यह बात भी गप्प ही लगी थी. वह चुप रहा. दादाजी ने वरुण से अगला सवाल पूछा – “जे ऊपर तार कैसे हैं? औ-ज्जे बतख बारी गाड़ी चौं ठाड़ी है?”
“वो दूल्हा उधर से उन तारों पर लटक के उड़ता हुआ आयेगा. और दुल्हन इधर से इस बत्तख पर फिसलती हुई जाएगी.” वरुण ने बताया.
“बाह! ब्याह के संग सरकस कौ हू इंतजाम है.”
लुल्ली ने शर्माते हुए कहा,”दद्दा मोए पानी के बतासे भौत पसंद लगत हैं. खाय लूँ?”
“लला तोए बचपन सैं ही खट्टी चीजें भौत पसंद हतीं. चल!” दादाजी, वरुण और लुल्ली, तीनो गोलगप्पे के स्टॉल पर पहुँच गये.
“बेटा बरुन! जे बतासे वाला कम्पाउंडर है क्या ? दस्ताने काए कौ पहने है? आपरेसन करके आया है?” गोलगप्पे वाले के सर्जिकल ग्लव्स देख कर दादाजी ने सवाल दाग दिए.
“हाइजीन के लिये दादा जी. मतलब साफ-सफाई रखने के लिये. हाथों में कीटाणु होते हैं न!”
“मतलब दस्ताने पहन कैं जे बतासे वारौ कछु भी करै, हाथ साफ रहेंगे बाके.” कुछ क्षण सोच कर दादाजी फिर बोले,”पर दस्ताना तौ गंदे होएंगे? …अरे समझे, जे अपनी हाइजीन के चक्कर में है, हमारी नहीं.”
“सई कही दद्दा,” लुल्ली बोला, “अभैं जे अपनी बुस्सट में हाथ डाल, काँख खुजाय के सूँघ रओ हतो.”
“छी! लुल्ली चाचा यार, खाने दोगे कि नहीं?” वरुण को घिन आ गई.

गोलगप्पे निपटा कर वे बाकी स्टॉल्स का मुआयना करने लगे. अभी ढक्कन नहीं खुले थे. और ढक्कन खुलवा सके ऐसा दीदावर वहाँ अभी पैदा नहीं हुआ था. शादी-ब्याह में खाने के ढक्कन खुलवाने वाले ही आगे चलकर समाज का नेतृत्व करते हैं. उनके अंदर खाने की वो भूख होती है जो नेता बनने के लिये आवश्यक है. सबसे बड़ा भूखा ही सबसे बड़ा नेता बनता है. वे सब टहलते हुए उस जगह आ गए जहाँ प्लेट्स रखी थीं और सलाद लगा था.
दादाजी ने उस जगह को देखा और वरुण से पूछा,”बेटा जे खायबे की चीजें हैं, या सजायबे की?”
“अरे दादा जी, ये सलाद है!”
“तौ जे मोमिया सैं काय ढकी हैं?”
“वही, हाइजीन के लिये, मतलब साफ-सफाई के लिये. कवर कर देने से इस पर मक्खियाँ नहीं बैठेंगी. सब्ज़ियां एकदम फ्रेश, ताजी रहेंगी.”
“बाह! सब्जियन कौ बूटी पाल्लर है.” दादाजी ने कहा.
“मतलब?”
“मतलब जे सब्ज़ी वारौ नैक देर पहलें, जमीन पै बैठ कैं सब्जी काट रओ हतो, महीं गईया-कुत्ता घूम रहे हे. अब सब्जी एकदम चकाचक लग रई है. हम हिन्दुस्तानियन कौं एक चीज़ भौत अच्छे से आत.”
“का?” लुल्ली ने पूछा.
“ढांकबो.” दादाजी ने कहा.
“दद्दा!” लुल्ली ने पुनः बोलना शुरू किया, “मैंने देखी सब्जी काटत भये जे अपनी नाक में उँगरिया डाल कैं.”
“छी! लुल्ली चाचा मैं घर जा रहा हूँ. आप और दादाजी रुको यहीं और अपनी ‘गम्भीर’ चर्चा चालू रखो.” वरुण बुरी तरह चिढ़ गया.
“चुप लुल्ली!” दादा जी ने लुल्ली को फटकारा, “ऐसी चीजें देखते हैं, पर बोलते नहीं हैं. हैं न बेटा बरुन?” और वरुण से कहा,”बेटा बैंड की आवाज आय रई है, बारात आयबे वारी भई. ऐसौ तौ नहीं हैं कहूँ पपोली ने दूला-दुल्हन हू किराये के बुलबाये होएं? गाँव कौ एक आदमी नहीं दिख रहौ. …अरे पपोली आय गओ!” पपोली को आता हुआ देख, दादाजी चहक पड़े, “वाह रे पपोली! बाल रंगबाये कैं तू पूरौ सुतुर्मुर्ग लग रओ है.”
“सुधज्जाओ छक्कन!” पपोली बाबा ने कहा. पर दादाजी कहाँ सुधरने वाले थे.
“भाई सादी में काम करबे बारौ बस बोई है, जो चमड़ा कौ बैग बगल में दबाए होए.” दादाजी ने पपोली बाबा के बैग की ओर इशारा करके व्यंग्य किया. “लिफाफा लैबे कैं लैं किराये के आदमी नाहीं धरे?”
“नहीं, तुम जो लिफाफा देओगे, बासैं ही तौ किराये के आदमियन कौ पेमेंट होएगौ.” पपोली बाबा ने मजाक किया.
“अच्छा सुन! बो तेरी जाँच चल्लई थी, जा में तू सस्पेंड है गओ हो, खतम है गई का? पेंसन मिलन लगी?”
“त..त..तुम लोग नास्ता करौ, मैं सर्मा से मिल लूँ.” अपना ही मजाक खुद पर भारी पड़ते देख पपोली बाबा खिसक लिये. इधर बारात भी अंदर आ गई.

“काए बरुन, जे बारात के मौड़ा मौंह ऊपर कर कैं का ऊ-ऊ की आवाज निकाल्लये हैं? ऐसी तौ बंगालिनें दुर्गा पूजा पै निकात्त हैं.”
“दादाजी आजकल ऐसे ही एन्जॉय करते हैं.” वरुण बोला.
“दद्दा, ऐसौ करबे सैं भ्या में भूत-परेत नाहीं आत.” लुल्ली ने ‘एक्सपर्ट कमेंट’ किया.
“भूत-परेत? जे सब ससुर खुद भूत-परेत दिख रऐ हैं. सिवजी की बारात है पूरी. पर नाच बढ़िया रए हैं. अरे बरुन, गर्मी लग रई है, जा द्रोन बारे सैं बोल कि नैक सिर पर नचाय दै जाय. हबा अच्छी फैंकत है.”
“दद्दा! मा नाच है रओ है. मैं हू नाच लूँ?” लुल्ली ने नज़र नीची करके पूछा.
“अरे लुल्ली लला, तू कैसें नचेगौ! घुँघरू तौ लाओ ही नाहीं.” दादाजी ने इतना कह कर डीजे की तरफ़ देखा और उनकी निगाहें थम गईं, “बाह, क्या नृत्य है. एकदम नबीन प्रकार का है. अरे पपोली हू पहुँच गए अपनौ मटका मटकाएबे! मचल तौ भाभी हू रही हैं.” कुछ लोग भाभी जी को खींच कर डीजे पर ले आए. “सालन बाद भाभी कौ नृत्य देखौ है. अब बूढ़ी है गईं नैक, पर लचक बई है.”
“दादाजी आपने कुछ कहा?” वरुण ने पूछा.
“दद्दा हू नचबौ चाय रए हैं.” लुल्ली ने कहा.
“चुप्प!” दादाजी ने लुल्ली को फटकारा.

“दादाजी वर-माला होने वाली है, चलो देखें.” वरुण ने ज़िद की. वे तीनों वरमाला देखने आ गए.
“अरे बरुन, जे कैसी बर-माला है? जे दूला कौं कंधा पै काय उठाए हैं बाके मित्र?”
“दद्दा मोए लगत जे तिक-तिक घोड़ी खेलेंगे.” लुल्ली ने अनुमान लगाया.
चर्चा चल ही रही थी कि अचानक वहाँ भगदड़ मच गई. लोग एक के ऊपर एक गिरते पड़ते भागने लगे. किसी ने अफ़वाह फैला दी थी कि खाना शुरू हो गया. अफवाह सच थी. दादा जी, वरुण, लुल्ली भी भागे. पीछे किसी ने छक्कन-छक्कन की आवाज़ लगाई. दादाजी ने मुड़ कर देखा तो पपोली खड़े थे.
“भोजन हमाए यहाँ करियो.” पपोली बाबा ने कहा.
“हमाए यहाँ?” दादाजी ने उन्हें आश्चर्य से देखा.
“अच्छा, नाश्ता सर्मा के यहाँ और भोजन हू यहीं? बैसे सर्मा है भलौ आदमी. बोलो- पपोली भाई साहब, माना आपके यहाँ सादी है, पर दो मिनट को आना पड़ेगा. बगल-बगल में ही तौ है.”
“हाँ,हाँ! भौत बढ़िया आदमी है सर्मा. त..त. तुम चलो पपोली, हम पीछे-पीछे आत.” बाहर आकर दादा जी ने लुल्ली के सिर पर एक ज़ोर की चपत लगाई, “सारे चूतिया, तोसैं कही ध्यान से देखिये.”
वापस लौटते हुए दादाजी ने वरुण से कहा, ” बेटा अगर इत्ते आइटम होएं, तौ ऐसी सादियन में लिफाफा लैबे की जगै टिकट लगाय देनौ चहियें.

सम्बंधित

व्यंग्य | कस्टम का मुशायरा

व्यंग्य | अपील का जादू

व्यंग्य | उखड़े खम्भे

व्यंग्य | अरुण यह मधुमय देश हमारा


अपनी राय हमें  इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.