व्यंग्य | दुर्लभ प्रजाति के पाठक बरामद

एजेंसी | कल ग्वालियर में एसटीएफ ने छापा मारकर रेयर प्रजाति के दो पाठक बरामद किए. पाठक, हुरावली पुलिया के नीचे बोरियों में छिपा कर रखे गए थे. इस सिलसिले में पुलिस ने ठेलेश पुत्र पेलेश को गिरफ़्तार कर पाठक संरक्षण एवं शिकार से प्रतिषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है.

प्रधान आरक्षक पी.के.आन्दो ने बताया कि ज़रिये मुख़बिर सूचना मिली थी कि कुछ तस्कर दुर्लभ किस्म के पाठकों को बेचने की फ़िराक में हैं. एसटीएफ ने लेखक बन कर उनसे सम्पर्क किया था. आरोपी के बयान के मुताबिक वे लोग गाँव-कस्बों से पाठकों को पकड़ कर, शहर में बड़े लेखकों को ऊँचे दाम पर बेच देते थे. लॉकडाउन के कारण वे कहीं जा नहीं पा रहे थे. आरोपी के साथ दो तस्कर और भी थे, जो दिन में अंधेरे का लाभ उठाकर भाग निकले.

इस सम्बंध में दैनिक पिटपिट ने प्रोफेसर एम.के.पतानई से चर्चा की. उन्होंने बताया कि ये रीडर्स अत्यंत दुर्लभ हैं. यूनेस्को की संकटापन्न रेयर रीडर्स की लिस्ट में इनका पहला स्थान है. श्री पतानई के मुताबिक़ इन पाठकों में लिखने की क्षमता नहीं होती है. अर्थात ये कुछ भी लिख नहीं सकते हैं, केवल पढ़ सकते हैं. ये दूसरों की रचनाएँ पढ़ते और सुनाते हैं. अनेक कहानियाँ, कविताएँ इनको मुँह ज़बानी याद रहती हैं. यदि इनको कोई पुस्तक या आलेख पढ़ने को दिया जाए, तो ये बदले में अपना लिखा कुछ भी पढ़ने को नहीं देते हैं. अंतराष्ट्रीय बाज़ार में इनकी बहुत माँग है. सूत्रों के मुताबिक़ दोनों रीडर्स की कीमत करोड़ों में आँकी जा रही है.

प्राचीन काल में इस तरह के पाठक भारत में बहुतायत में पाये जाते थे. परन्तु निरंतर शिकार से इनकी संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है. सोशल मीडिया के उदय के बाद तो इनके शिकार और तस्करी के मामले बहुत तेजी से बढ़े हैं. सूचना-तकनीक के उपयोग से अब कई हज़ार किलोमीटर दूर बैठ कर भी इनका शिकार किया जाना सम्भव हो गया है.

दैनिक पिटपिट देश में पाठकों की संख्या में तेजी से आई कमी को लगातार उठाता रहा है. लेखकों द्वारा पाठकों के अंधाधुंध शिकार के कारण वर्तमान में देश में लगभग पन्द्रह सौ पाठक ही शेष बचे हैं. लेखन की कमज़ोरी दूर करने के लिए इन पाठकों का शिकार किया जाता है. भारत के अनेक बड़े शहरों जैसे दिल्ली, पटना, जयपुर, बनारस में पाठकों का शोरबा बड़े चाव से पिया जाता है. यह भी मान्यता है कि पाठकों की हड्डी का तेल लेखकों में विचारों के शीघ्रपतन, क्रांति के स्वप्नदोष और पक्षधरता के पतलेपन को दूर करने में उपयोगी होता है. उनकी खाल से बने बेल्ट-पर्स की भी साहित्य के बाज़ार में बहुत मांग है.

एसटीएफ की कार्यवाही के दौरान मौके पर पेट्रा (पीपुल फ़ॉर द इथिकल ट्रीटमेंट ऑफ़ रीडर्स) के कार्यकर्ता भी पहुँच गए. पुलिस ने पंचनामा बना कर पाठकों को पेट्रा द्वारा संचालित पाठक संरक्षण गृह भेज दिया. बरामद पाठक बहुत घबराए हुए और दहशत में थे. घटना के बाद पेट्रा के कार्यकर्ताओं ने बारादरी चौराहे पर जाम लगा कर हंगामा भी किया. संस्था लम्बे समय से पाठकों के संरक्षण के लिए एक पृथक अभ्यारण्य बनाने की माँग करती रही है. उन्होंने सरकार पर पाठकों की घटती संख्या को लेकर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया.

सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि सरकार पाठकों के संरक्षण के लिए गम्भीर है और उनकी संख्या में वृद्धि के लिए निरन्तर प्रयासरत है. इस हेतु प्रोजेक्ट टाइगर की तर्ज पर प्रोजेक्ट पाठक शुरू किया गया है. जिसके आशाजनक परिणाम मिले हैं.

अभी हाल में स्थानीय चिड़ियाघर में एक मादा पाठक ने तीन नन्हें पाठकों को जन्म दिया है. जिन्हें देखने के लिए लेखकों की भारी भीड़ उमड़ रही है. स्थानीय प्रशासन उन्हें लेखकों से बचाने का हर सम्भव प्रयत्न कर रहा है. तीन नन्हें पाठकों को मिला कर अब चिड़ियाघर में पाठकों की संख्या पांच हो गई है.

वहीं दूसरी ओर प्रगतिशील लघु लेखक संघ (ललेस) ने आरोप लगाया कि सरकार पाठकों के संरक्षण के बहाने से छोटे लेखकों का उत्पीड़न कर रही है. आदि काल से ही लघु लेखक समुदाय पाठकों का शिकार करता रहा है. यह उनका पारम्परिक व्यवसाय है. छोटे लेखक पाठकों को पकड़ कर बड़े लेखकों को बेच देते हैं, यही उनकी रोज़ी-रोटी का जरिया है. शिकार पर प्रतिबंध से उनकी आजीविका पर संकट उत्पन्न हो गया है. उन्होंने माँग की कि सरकार को छोटे लेखकों के पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिये.

पुलिस इस बात की जाँच कर रही है कि आरोपियों को ये दुर्लभ पाठक कहाँ से प्राप्त हुए और ये कहाँ बेचे जाने थे. सूत्रों के अनुसार पूछताछ में कई बड़े लेखकों-कवियों के नाम सामने आए हैं, जिनके लिए आरोपियों ने पाठकों की व्यवस्था की थी. कुछ प्रोफ़ेसरों को भी पाठक सप्लाई करने की बात सामने आ रही है. पुलिस अधीक्षक ने बताया कि शीघ्र ही कुछ बड़े साहित्यकारों, प्रोफेसरों के नामों का खुलासा होगा. उन्होंने लोगों से अपील की कि वे पाठकों की खाल से बने सामानों का बहिष्कार करें, और कहा-
करनी है रक्षा हमें
पाठकों की श्रोताओं की
खाल से जो बने
पर्स-बेल्ट ठुकराइये
छपता हूँ मैं भी खूब
पढ़ता है कोई नहीं
मेरे लिए भी कहीं से
एक पाठक ले आइये.

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