सआदत हसन मंटो | कुछ लघु कथाएं
सआदत हसन मंटो के बारे में राजेंद्र यादव कहा करते थे कि चेख़व के बाद मंटो ही थे, जिन्होंने अपनी कहानियों के दम पर अपनी जगह बना ली. कमलेश्वर की नज़र में मंटो दुनिया के बेहतरीन कहानीकार हुए.
मंटो की कहानियों की एक ख़ूबी यह भी है कि विषय चाहे जो हो, सच और एक ख़ास समय का विद्रूप उनकी निगाहों से ओझल नहीं होते और कई बार इसकी मानवीय अभिव्यक्ति भी तंज़ की शक़्ल में सामने आती है. और तंज़ भी ऐसा कि आह-वाह के साथ ही अनायास हाय-हाय भी ज़बान पर आ जाए.
करामात
लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरु किए.
लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अंधेरे में बाहर फेंकने लगे,कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौक़ा पाकर अपने से अलहदा कर दिया, ताकि क़ानूनी गिरफ़्त से बचे रहें.
एक आदमी को बहुत दिक़्कत पेश आई. उसके पास शक्कर की दो बोरियाँ थी जो उसने पंसारी की दूकान से लूटी थीं. एक तो वह जूँ-तूँ रात के अंधेरे में पास वाले कुएँ में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा ख़ुद भी साथ चला गया.
शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गये. कुएँ में रस्सियाँ डाली गईं.
जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया.
लेकिन वह चंद घंटों के बाद मर गया.
दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए उस कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था.
उसी रात उस आदमी की क़ब्र पर दीए जल रहे थे.
कसर-ए-नफ्सी
चलती गाड़ी रोक ली गई. जो दूसरे मज़हब के थे उन को निकाल निकाल कर तलवारों और गोलियों से हलाक़ कर दिया गया.
इस से फ़ारिग़ हो कर गाड़ी के बाक़ी मुसाफ़िरों की हलवे, दूध और फलों से तवाज़ो की गई.
गाड़ी चलने से पहले तवाज़ो करने वालों के मुंतज़िम ने मुसाफ़िरों को मुख़ातब करके कहा. “भाईओ और बहनो. हमें गाड़ी की आमद की इत्तिला बहुत देर में मिली. यही वजह है कि हम जिस तरह चाहते थे उस तरह आप की ख़िदमत न कर सके.”
जूता
हुजूम ने रुख़ बदला और सर गंगाराम के बुत पर पिल पड़ा. लाठियां बरसाई गईं, ईंटें और पत्थर फेंके गए.
एक ने मुँह पर तारकोल मल दिया.
दूसरे ने बहुत से पुराने जूते जमा किए और उन का हार बना कर बुत के गले में डालने के लिए आगे बढ़ा. मगर पुलिस आ गई और गोलियां चलना शुरू हुईं.
जूतों का हार पहनाने वाला ज़ख़्मी हो गया. चुनांचे मरहम पट्टी के लिए उसे सर गंगाराम हस्पताल भेज दिया गया.
ख़बरदार
बलवाई मालिक मकान को बड़ी मुश्किलों से घसीट कर बाहर ले आए.
कपड़े झाड़ कर वो उठ खड़ा हुआ और बलवाइयों से कहने लगा –
“तुम मुझे मार डालो लेकिन ख़बरदार जो मेरे रुपये पैसे को हाथ लगाया.”
सदक़े उसके
मुजरा ख़त्म हुआ.
तमाशाई रुख़सत हो गये.
उस्ताद जी ने कहा- सब कुछ लुटा-पिटाकर यहां आये थे, लेकिन अल्लाह मियां ने चंद दिनों में ही वारे-न्यारे कर दिये…
उलाहना
देखो, यार.
तुमने ब्लैक-मार्केट के दाम भी लिए…
और ऐसा रद्दी पैट्रोल दिया…
कि एक दुकान भी न जली.
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बग़ैर उनवान के | नेहरू के नाम मंटो का ख़त
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