रिपोर्ट | रणजी ट्रॉफ़ी पहली बार एमपी के नाम

जीवन बहुत बार एक ही मौक़ा देता है. लेकिन कई बार क़िस्मत आप पर मेहरबान होती है और आपको दूसरा मौक़ा भी देती है. अब ये व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वो इन मौक़ों को किस तरह से लेता है. क़िस्मत ने चंद्रकांत पंडित को एक दूसरा मौक़ा दिया और इस बार उन्होंने चूक नहीं की. चंद्रकांत पंडित ने 1998-99 में कप्तान के रूप में पहली ख़िताबी जीत के जिस मौक़े को खो दिया था, उसे 2021-22 सत्र में एक कोच के रूप में पूरा कर रहे थे.

आज बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में खेले गए फ़ाइनल मैच में मध्य प्रदेश की टीम ने 41 बार की चैंपियन मुम्बई टीम को 06 विकेट से हराकर पहली बार रणजी ट्रॉफ़ी जीत ली. आदित्य श्रीवास्तव इस टीम के कप्तान थे और चंद्रकांत पंडित चीफ़ कोच.

1951 से रणजी खेल रही मध्य प्रदेश की टीम 1998-99 सत्र में पहली बार फ़ाइनल में पहुंची थी. तब चंद्रकांत पंडित मध्य प्रदेश टीम के कप्तान थे. उनका मुक़ाबला कर्नाटक से था. लेकिन टीम चूक गई. शायद ये एक बेहतर और नामी गिरामी टीम कर्नाटक के सामने एक युवा टीम की अनुभवहीनता थी कि बेहतर स्थिति में होते हुए भी मध्य प्रदेश की टीम पहली बार चैंपियन नहीं बन सकी. उस बार मध्य प्रदेश की टीम ने पहली पारी में 75 रनों की बढ़त ले ली थी और अंतिम दिन उन्हें जीत के लिए केवल 249 रनों का लक्ष्य मिला. लेकिन टीम चूक गयी और पूरी टीम 150 रनों पर ढेर हो गई.

इस बार मध्य प्रदेश की टीम ने शानदार प्रदर्शन कर एक बार फिर से फ़ाइनल में प्रवेश किया. लेकिन फ़ेवरिट पृथ्वी शॉ की कप्तानी वाली मुम्बई की टीम ही थी. 41 बार की चैंपियन टीम मुम्बई. पर इतिहास मध्य प्रदेश की टीम को बनाना था.

टॉस मुम्बई ने जीता और पहले बल्लेबाजी करते हुए 374 रन बनाए. पिछले सत्र से ही शानदार बल्लेबाजी कर रहे सरफराज के 134 रनों और यशस्वी जायसवाल के 78 रनों की मदद से. जवाब में मध्य प्रदेश की टीम ने एक बड़ा स्कोर खड़ा किया – 536 रनों का. इसमें तीन शतक बने. यश दुबे ने 133, शुभम ने 116 और रजत पाटीदार ने 122 रन बनाए. चौथे दिन की समाप्ति पर मुंबई के दो विकेट पर 113 रन बने थे और अभी भी वो मध्य प्रदेश से 49 रन पीछे थी. मध्य प्रदेश की टीम बहुत बेहतर स्थिति में थी. लेकिन उन्हें कहीं न कहीं 1998-99 की स्मृति हॉण्ट कर रही होगी. लेकिन उन्होंने शानदार गेंदबाजी की और मुम्बई को 249 रनों पर आउट कर दिया. उसने 108 रनों के लक्ष्य को आसानी से 04 विकेट खोकर पा लिया.

अब मध्यप्रदेश की टीम पहली बार रणजी चैंपियन थी और प्रदेश के क्रिकेट इतिहास की नई इबारत लिखी जा रही थी.

आख़िरी ओवर इस सत्र के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी सरफ़राज़ कर रहे थे जिन्होंने इस सत्र में सर्वाधिक 983 रन बनाए थे. और उनके सामने इस सत्र में दूसरे सर्वधिक रन बनाने वाले रजत पाटीदार थे. टीम के कप्तान आदित्य सामने के छोर पर अपनी कप्तानी में इस नए इतिहास के लिखे जाने के गवाह बन रहे थे. रजत ने पहली ही गेंद पर चौका लगाया. अब स्कोर बराबर था. उसके बाद अगली दो गेंद डॉट बॉल थीं. उसके बाद रजत ने सामने की ओर बॉल को टैप किया और एक रन ले लिया.

टीम मध्य प्रदेश जीत चुकी थी. सारे खिलाड़ी दौड़ कर मैदान में आ गए. उनके पीछे धीरे- धीरे चंद्रकांत पंडित आए और पूरी टीम ने उन्हें कंधों पर उठा लिया.

ये 1998-99 में होना था, नहीं हो सका था, अब हो रहा था. 1998-99 में अधूरा छूट गया सपना साकार रूप ले रहा था. एक टीम की अपने कोच को इससे बेहतर गुरु दक्षिणा और क्या हो सकती थी कि वे उसके अधूरे छूट गए कार्य को पूरा कर रहे थे.

जीत के बाद पंडित भावुक थे. वे कह रहे थे, ‘लोग कहते हैं जो पिता नहीं कर सका वो बेटे ने कर दिखाया. आदित्य श्रीवास्तव ने ये कर दिखाया.’

अब मध्य प्रदेश की टीम राष्ट्रीय चैंपियन है. रणजी क्रिकेट की राष्ट्रीय प्रतियोगिता है. हर क्रिकेट खिलाड़ी का राष्ट्रीय टीम में खेलने का सपना रणजी ट्रॉफ़ी से होकर ही गुज़रता है. आज भले ही इसकी अहमियत आईपीएल के चलते थोड़ी कम ज़रूर हुई है. लेकिन एक समय था जब इसमें खिलाड़ी का परफ़ॉर्मेंस उसके राष्ट्रीय टीम में प्रवेश का टिकट हुआ करता था. आज भी है. हर खिलाड़ी का पहला सपना रणजी में खेलना होता था. जैसे आज आईपीएल खेलना है. आज उसकी अहमियत आधी आईपीएल ने बांट ली है. इसके बावजूद आज भी रणजी में खेलना कम गौरव की बात नहीं है और रणजी चैंपियन होना भी.

हर उस खिलाड़ी ने जिसने रणजी में परफ़ॉर्म किया, भारत के लिए खेला. लेकिन इस सब के बावजूद क्या ही कमाल है कुछ ऐसे खिलाड़ी हैं जो रणजी के अद्भुत परफ़ॉर्मर रहे हैं, वे रणजी के चमकते सितारे रहे, पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं खेल सके और अगर एक-आध मौक़ा भी मिला तो चल न सके. हांलाकि उनमें प्रतिभा कूट-कूट कर भरी थी. वे क्रिकेट जीनियस थे. याद कीजिए राजेन्द्र गोयल, राजिंदर सिंह हंस, आशीष विंस्टन जैदी, पद्माकर शिवालकर, जलज सक्सेना, वसीम जाफर याफिर अमोल मजूमदार जैसे खिलाड़ियों को. यही नियति है.

वे सभी जिन्होंने 1983 से पहले क्रिकेट को फ़ॉलो किया है, जानते हैं कि ये वो समय था जब रेडियो कमेंट्री क्रिकेट को धीरे-धीरे लोकप्रिय बना रही थी. लेकिन अभी भी क्रिकेट बड़े नगरों तक सीमित था. तब क्रिकेट और रणजी विजेता का मतलब मुम्बई, दिल्ली और कर्नाटक हुआ करता था. और तब आता है साल 1983. क्रिकेट विश्व कप भारत क्या आता है, क्रिकेट भारत के हर छोटे-बड़े शहर की गलियों तक पहुंच जाता है. अब इन टीमों को ज़बरदस्त चुनौती मिलती है. अब उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब से लेकर सौराष्ट्र गुजरात और बंगाल तक चैंपियन बनते हैं और कर्नाटक और दिल्ली के ही नहीं, बल्कि मुम्बई के वर्चस्व को भी पूरी तरह समाप्त कर देते हैं.

क्रिकेट के तीन फ़ॉर्मेट की टीम घरेलू प्रतियोगिताएं है – टेस्ट फ़ॉर्मेट की रणजी ट्रॉफ़ी, एक दिवसीय फ़ॉर्मेट की विजय हज़ारे ट्रॉफ़ी और टी-20 फॉर्मेट की मुश्ताक़ अली ट्रॉफ़ी. वर्तमान सत्र की रणजी चैंपियन मध्य प्रदेश की टीम है तो विजय हज़ारे चैंपियन हिमाचल प्रदेश और मुश्ताक़ अली ट्रॉफ़ी चैंपियन तमिलनाडु है. धुर उत्तर से सुदूर दक्षिण तक क्रिकेट के चैंपियन मौजूद हैं. दरअसल खेल की सबसे ख़ूबसूरत बात यही वैरायटी और लोकप्रियता है.

फ़िलहाल तो रणजी के नये चैंपियन को बहुत बधाई. एक ऐसी टीम को उसके खिलाड़ियों को बहुत बधाई, जिसमें कोई बड़ा नामी-गिरामी खिलाड़ी नहीं, पर हर खिलाड़ी चैंपियन है.


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