फ़ुटबॉल | नियति और खेल के मेल का चर्मोत्कर्ष अभी बाक़ी है

खेल केवल खेल भर नहीं हैं. और फ़ुटबॉल भी केवल खेल भर नहीं है. ये खिलाड़ियों का अथक परिश्रम है, उनका अदम्य हौसला है, उनका अद्भुत खेल-कौशल और विस्फोटक प्रतिभा भी है, यह खेल मैनेजरों की नित नवीन रणनीतियां भी है, उनकी शतरंजी चालें हैं, विपक्षी टीम की चालबाजियों को समझने की उनकी गहन अंतर्दृष्टि और उसे भोथरा कर देने की अद्भुत समझ भी है. इतना ही नहीं, ये नियति है, भाग्य और अनहोनियाँ भी हैं. इन सब के मिलने पर ही फ़ुटबॉल जैसा खेल बनता है. और इसे समझना हो तो फ़ुटबॉल विश्व कप देखने से बेहतर और क्या हो सकता है.

जी हां, क़तर फ़ुटबॉल विश्व कप अब अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है. फ़ुटबॉल का सरताज बनने के संघर्ष में अब केवल चार टीम बची हैं और तीन मैच.
और इस बार बात बची चार टीमों के बारे में नहीं बल्कि बात उन तमाम टीमों की, जिन्हें यहाँ होना चाहिए था या जो यहां हो सकती थीं, पर हैं नहीं.

सबसे पहली टीम जिसे इस विश्व कप में होना चाहिए था और जो यहां हो सकती थी, पर है नहीं, वो इटली की टीम है. ये हम टूर्नामेंट शुरू होने से पहले ही जान गए थे कि इटली यहां नहीं होगी. तमाम जद्दोजहद के बाद भी चार बार की विश्व चैंपियन और वर्तमान यूरो चैंपियन टीम लगातार दूसरी बार विश्व कप में क्वालीफ़ाई नहीं कर सकी. ‘कैटेनेसियो’ जैसी अभेद्य रक्षा पद्धति ईजाद करने वाले और जीनो डोफ़ व बुफों जैसे गोलकीपर और बरेसी, पाओली माल्दिनी, फेबियो कैनावरो व चेलिनी जैसे डिफेंडर देने वाली इटली की टीम का यहां न होना बहुत सारे खेल प्रेमियों के लिए गहन दुख का विषय हो सकता है और आश्चर्य का भी, पर यह बहुत पहले तय हो चुका था कि वो यहां नहीं ही होगी. यही नियति है. यही फ़ुटबॉल है.

दूसरी टीम जो यहां हो सकती थी और नहीं हैं वो जर्मनी की टीम है. चार बार की चैंपियन ये टीम सही मायने में यूरोपीय फ़ुटबॉल का प्रतिनिधित्व करती है और अपनी शारीरिक श्रेष्ठता के बूते शारीरिक बल और गति से किसी भी टीम को मात देने की क्षमता रखने वाली टीम लगातार दूसरी बार पहले चरण से आगे बढ़ने में नाक़ामयाब रही है. पहले ही मैच में जापान ने हराकर उसके आगे बढ़ने की संभावना को क्षीण कर दिया था और स्पेन से ड्रॉ ने रही-सही कसर पूरी कर दी. यही दुर्भाग्य है. यही फ़ुटबॉल है.

एक और टीम जो यहां हो सकती थी और नहीं है, वो स्पेन की टीम है. जिसे प्री-क्वार्टर फ़ाइनल में मोरक्को ने हराकर आगे बढ़ने से रोक दिया. छोटे-छोटे पासों वाली टिकी-टाका तकनीक वाले ख़ूबसूरत खेल पद्धति ईज़ाद करने वाली स्पेन की टीम ने अपने पहले ही मैच में कोस्टारिका को 7-0 से हराकर अपने इरादे ज़ाहिर कर दिए थे. लेकिन टीम उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई. स्पेन की जो टीम सेमीफ़ाइनल में हो सकती थी, वो क्वार्टर फ़ाइनल में भी नहीं पहुंच सकी. क्वार्टर फ़ाइनल में पहुंचने वाली मोरक्को के अलावा बाकी सातों टीमें उम्मीद के अनुरूप ही पहुंची. यही क़िस्मत है. यही फ़ुटबॉल है.

इंग्लैंड की टीम भी सेमीफ़ाइनल में हो सकती थी और होनी चाहिए थी, पर दुख की बात है कि वो भी यहां नहीं है. 2018 में वो सेमीफ़ाइनल तक पहुंची थी, जहां क्रोशिया ने 2-1 से हरा कर उसका सफ़र रोक दिया था और 1966 के बाद दूसरे विश्व कप को जीतने से भी. इस बार फ्रांस उसके रास्ते में आया और उसका भाग्य भी. इस बार उसका सफ़र क्वार्टर फ़ाइनल में समाप्त हुआ. इस बार उसने शानदार फ़ुटबॉल खेली. दरअसल शनिवार 10 दिसंबर की रात फ्रांस और इंग्लैंड के बीच खेला गया क्वार्टर फ़ाइनल मैच इस विश्व कप का सबसे शानदार मैच था. निःसंदेह खेल के आधार पर इंग्लैंड को आगे बढ़ना चाहिए था, लेकिन भाग्य फ्रांस के साथ था. फ्रांस के 43 प्रतिशत बॉल पज़ेशन के मुक़ाबले इंग्लैंड का बॉल पज़ेशन 57 प्रतिशत था. फ्रांस के गोल पर 08 शॉट के मुक़ाबले इंग्लैंड ने 16 शॉट लगाए जिनमें से इंग्लैंड के 05 के मुक़ाबले 08 शॉट टारगेट पर थे. इंग्लैंड ने 02 के मुक़ाबले 05 कॉर्नर अर्जित किए. इस सब के बावजूद इंग्लैंड हार गया. दरअसल ये मौक़े चूक जाने का मामला था. हैरी केन ने दूसरी पेनाल्टी मिस की और बराबरी का मौक़ा ही नहीं खोया बल्कि आगे बढ़ने का रास्ता भी बंद कर लिया. यही भाग्य है. यही फ़ुटबॉल है.

और निःसंदेह विश्व नंबर एक नेमार की टीम ब्राजील को सेमीफ़ाइनल में होना ही चाहिए था, पर घोर निराशा का सबब है कि वो भी नहीं है. उसका सफ़र पिछली उपविजेता क्रोशिया ने क्वार्टर फ़ाइनल में ख़त्म किया. यह दोनों टीमों द्वारा शिद्दत से खेला गया मैच था, जिसके पहले 90 मिनट में दोनों टीम ने गोल करने के मौक़े खोए. उसके बाद जैसे ही अतिरिक्त समय शुरू हुआ नेमार का जादू देखने को मिला. उसने अपने बॉक्स के पास से गेंद ली और तीन क्रोशियाई खिलाड़ियों को छकाते हुए ब्राजील को 1-0 की बढ़त दिला दी. यह गोल ऐसा शानदार ही होना चाहिए था क्योंकि ये नेमार का 77वां अंतर्राष्ट्रीय गोल था और पेले के ब्राज़ील की और से सर्वाधिक गोल करने के रिकॉर्ड की बराबरी वाला गोल भी. अब ब्राज़ील जीत जाने ही वाला था और अतिरिक्त समय ख़त्म ही हुआ चाहता था कि स्थानापन्न खिलाड़ी ब्रूनो पेतकोविच ने 3 मिनट शेष रहते बराबरी का गोल दाग दिया. अब मैच शूट आउट में गया. क्रोशिया शूटआउट में एक बेहतरीन टीम है और यह उसने एक बार फिर सिद्ध किया. 2018 में भी उसने शूटआउट में शानदार खेल दिखाया था और यहां भी प्री क्वार्टर फ़ाइनल मैच में भी वो जापान को शूट आउट में हराकर आगे बढ़ी थी. इस बार उसने ब्राजील को 4-2 से हराया और उसे सेमीफ़ाइनल में जाने से रोक दिया. ये पिछले पांच विश्व कप में चौथा अवसर था कि उसकी क्वार्टर फ़ाइनल से विदाई हो रही थी. ये लाखों फ़ुटबॉल प्रेमियों का दिल टूट जाना था. विश्व कप का अचानक खत्म हो जाना था. जी हां, ये फ़ुटबॉल था. ये खेल था.

सीआर7 की टीम पुर्तगाल को भी सेमीफ़ाइनल में होना चाहिए था और दुनिया ऐसी ख़्वाहिश रखने वालों की कमी न थी. अफ़सोस वे भी नहीं है. मोरक्को ने एक बार फिर असंभव को संभव कर दिखाया. इस बार पुर्तगाल शिकार बना. तीसरे क्वार्टर फ़ाइनल में मोरक्को ने पुर्तगाल को 1-0 से हराकर बड़ा उलटफेर किया. पहले हाफ़ में खेल पुर्तगाल ने नियंत्रण अपने हाथ में रखा. जबकि मोरक्को कुछ काउंटर अटैक मूव ही बना सकने में समर्थ हुई. लेकिन मौक़ा मोरक्को ने भुनाया और 44वें मिनट में डिफ़ेंडर याह्या अत्तिअल्लाह के क्रॉस को सेविला के लिए खेलने वाले फ़ॉरवर्ड एन नसीरी ने हैडर से गेंद गोल में डालकर मोरक्को को 1-0 की बढ़त दिला दी. इसके बाद पुर्तगाल ने गोल करने के लिए अपनी पूरी ताक़त झोंक दी. दूसरे हाफ़ के 45 मिनट और 8 अतिरिक्त मिनट में अधिकांश समय खेल मोरक्को के बॉक्स के इर्द-गिर्द हुआ. पर मोरक्को का डिफ़ेंस और गोलकीपर बोनो की दीवार को पुर्तगाली खिलाड़ी नहीं भेद सके. यहां तक कि दूसरे हाफ़ में बहुत जल्द ही सीआर7 को भी खिलाया गया. पर नतीजा वही ढाक के तीन पात. एक और बड़ा अपसेट हुआ. 2016 की यूरोपियन चैंपियन खेत रही. यही अनहोनी है. यही फ़ुटबॉल है.

हां, पिछली विजेता फ्रांस, पिछली उपविजेता क्रोशिया और दो बार की विश्व विजेता अर्जेंटीना की टीम को यहाँ होना था. और वो यहां हैं. लेकिन यहां मोरक्को भी है. तो क्या उसे यहाँ नहीं होना चाहिए था?

निःसंदेह विश्व कप शुरू होने से पहले शायद ही किसी ने इस बात की कल्पना की होगी कि मोरक्को सेमीफ़ाइनल खेलेगा. लेकिन वो खेल रहा है. यही हक़ीक़त है. यही खेल है. यही फ़ुटबॉल है.

मोरक्को इस बार का जॉइंट किलर है. उसने इस विश्व कप में शानदार शुरुआत की. अपने पहले ही मैच में पिछली उपविजेता क्रोशिया से 0-0 से ड्रा खेला. उसके बाद विश्व नंबर दो टीम बेल्जियम को 2-0 से पीटा और फिर कनाडा को 2-1 से. प्री-क्वार्टर फ़ाइनल में स्पेन को शूटआउट में 3-0 और क्वार्टर फ़ाइनल में पुर्तगाल को 1-0 से हराकर सेमीफ़ाइनल में पहुंचने वाली पहली अफीकी टीम बनी. अपनी सेमीफ़ाइनल तक की इस यात्रा में उसने तीन तीन बड़ी टीमों को हराया और एक बड़ी टीम को ड्रा के लिए मजबूर किया. उसने यूरोपीय दर्प का मानमर्दन किया और अफ़्रीकी गौरव को स्थापित भी. इस टीम का हीरो उनका गोलकीपर बोनो है. अफ्रीकी व अरब जगत का हीरो टीम मोरक्को.

अभी तक जो भी हुआ वो भाग्य, नियति, और खेल के संयोग से बना फ़ुटबॉल था, फ़ुटबॉल का अद्भुत. आगे जो होगा वो भी नियति, भाग्य, होनी-अनहोनी के संयोग के आवरण में लिपटा और खिलाड़ियों के अद्भुत खेल कौशल व प्रतिभा और रणनीतियों से बना-संवरा वो खेल होगा जिसके पीछे पूरी दुनिया दीवानी है, जिसे वो फ़ुटबॉल के नाम से जानती है और जो उनके लिए खेल से बढ़कर जीवन-मरण जैसी कोई भावना बन जाती है.

हम उत्कर्ष देख चुके हैं. चर्मोत्कर्ष देखना बाक़ी है.


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