कहानी एक लफ़्ज़ की | दुकान

  • 8:54 pm
  • 2 September 2020


यों बाज़ार के इस दौर में दुकान की अहमियत बढ़ ही जानी है, हालांकि कम तो किसी दौर में नहीं रही. और बाज़ार भी दुकानों का समुच्य ही तो है. अरबी और फ़ारसी ज़बान में दुकान का उच्चारण ज़रूर फ़र्क़ है मगर मायने वही हैं. दुकान के एक मायने भंडार भी हैं, और जिसके पास भंडार उसके पास ताक़त. फिर भंडार किराने का हो, तेल का हो, दवाई का हो या दारू का…आप सोचते रहिए और यह फ़ेहरिस्त बड़ी होती जाएगी.

शायर लोग नाज़ुक मिज़ाज होते है और कुछ सपनों की दुनिया में डूबे से. तो सलीम कौसर फ़रमाते हैं,
हम गुल-ए-ख़्वाब सजाते थे दुकान-ए-दिल में
और फिर ख़ुद ही ख़रीदार हुआ करते थे.

और बक़ौल अनवर शऊर,
दुकान-ए-दिल में नवादिर सजे हुए हैं मगर
ये वो जगह है कि आते नहीं लुटेरे तक.

(शेर रेख़्ता की जानिब से)

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