कहानी एक लफ़्ज़ की | रसीद

  • 10:13 am
  • 31 August 2020


संज्ञा और क्रिया के तौर पर इस्तेमाल होने वाला लफ़्ज़ रसीद ऐसा है कि इससे हम सभी का पाला पड़ता है. फ़ीस या बिल जमा करके रसीद लेने से लेकर कहावत वाले – तो क्या रसीद करूं एक – तक.

फ़ारसी के रसदः से बना यह शब्द कई पर्यायवाची होने के बावजूद बोलचाल में सबसे ज़्यादा चलन में रहता है. रसदः यानी कि पहुंचा गया, पहुंच गया. रसीद के अंग्रेज़ी पर्यायवाची ‘रिसीट’ से इसका साम्य दिलचस्प लगता है, हालांकि दोनों अलग ज़बानों से हम तक आए हैं और उनकी उत्पत्ति के मूल अर्थ भी अलग-अलग हैं. लैटिन से फ़्रेंच में होते हुए अंग्रेज़ी तक आए ‘रिसीट’ शब्द की उत्पत्ति का आधार ‘रेसिपी’ है. यों ‘रिसीट’ का मतलब भी पाने या प्राप्त करने का स्वीकार ही है, मगर इसकी बुनियाद में लैटिन भाषा का शब्द रेसपिअर है, जिसके मायने लेना-पाना है. 14वीं सदी के अंत में डॉक्टर अपने मरीज़ों को जो नुस्ख़ा तजवीज़ करते वह ‘रेसिपी’ था.

‘रेसिपी’ पर लिखा कोई शेर तो अब तक निगाह से नहीं गुज़रा मगर ‘रसीद’ पर बेशुमार. मुलाहिज़ा फ़रमाइए,

बक़ौल बेदम शाह वारसी,
हल्की सी इक ख़राश है क़ासिद के हल्क़ पर
ये ख़त जवाब-ए-ख़त है कि ख़त की रसीद है.

अमीर मीनाई के शेर पर ग़ौर कीजिए,
जो लाश भेजी थी क़ासिद की भेजते ख़त भी
रसीद वो तो मिरे ख़त की थी जवाब न था.

और बक़ौल बेख़ुद बदायूंनी,
छेड़ देखो कि ख़त तो लिक्खा है
मेरे ख़त की मगर रसीद नहीं.

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