पांच महीने से फ़्रेंच कुनबे का डेरा है महराजगंज का गांव

  • 9:58 am
  • 20 August 2020

महराजगंज | दुनिया की सैर को निकला एक फ़्रेंच परिवार हिन्दुस्तान घूम लेने के बाद नेपाल जाने के इरादे से महराजगंज से होकर गुज़रा तो फिर यहीं के कोल्हुआ गाँव में ठहर गया. पिछले पाँच महीने से इस परिवार के पाँच लोगों की रिहाइश कोल्हुआ उर्फ सिहोरवा शिव मंदिर है. 24 मार्च को ये लोग इस इरादे से गाँव पहुंचे थे कि अगले रोज़ सीमा पार करके नेपाल चले जाएंगे. उसी रात लॉकडाउन की घोषणा के बाद नेपाल की सीमा सील हो गई. ख़बर होने पर अफ़सरों ने इस परिवार के स्वास्थ्य की जाँच कराने के बाद गेस्ट हाउस में ठहराने की पेशकश भी की मगर इन्हें गाँव में रहना ज़्यादा भाया.

अब ये मंदिर के भंडारे में भोजन करते हैं, गाँव वालों से मिलते-जुलते हैं, घूमते हैं, कभी-कभार अपने मोबाइल पर संगीत बजाकर नाचते हैं, तस्वीरें खींचते हैं. इतने लंबे समय तक यहाँ के माहौल में रहने के बाद इन लोगों ने भोजपुरी के कामचलाऊ शब्द भी सीख लिए हैं ताकि अपने मेज़बान गाँव वालों से संवाद आसान हो सके.

पिछले साल जुलाई में अपने कुनबे के साथ कार से दुनिया घूमने निकले टूलूज़ शहर के पोलारेज़ पैट्रिस जोसेफ़ का हिन्दुस्तान में इतने अर्से तक मेहमानी का कोई इरादा नहीं रहा होगा. उनकी योजना में तो 24 देशों की यात्रा शामिल है. यूरोप, तुर्की, जॉर्जिया, ओमान, ईरान से पाकिस्तान और फिर वाघा के रास्ते एक मार्च को भारत पहुंचे. यहाँ रहने-घूमने के बाद नेपाल जाते हुए उन सबको रुकना पड़ा.

भारत में उनके टूरिस्ट वीसा की अवधि फ़िलहाल बढ़ा दी गई है. उनका म्यांमार, थाईलैंड, लाओस और कंबोडिया जाना अभी बाक़ी है. इस परिवार में पोलारेज़ की पत्नी विरजीनी पोलारेज़, उनकी बेटियां ओफ़िली और लोला ज़ेनिफ़र और बेटा टॉम है.

पोलारेज़ पैट्रिस ख़ुद मोटर मैकेनिक हैं और उनकी पत्नी विरजीनी स्वास्थ्य सेवा में हैं. गांव के लोगों के सत्कार और सहयोग से अभिभूत पोलारेज़ दम्पति ने बच्चों के साथ मिलकर गांव में पौधरोपण किया है. बक़ौल पोलारेज़, ये पौधे गांव में उनके ठहरने के निशानी के तौर पर बने रहेंगे और पर्यावरण को बेहतर बनाने में यह उन सबका बहुत छोटा-सा योगदान होगा.

गांव में रहते हुए भाषा की दिक्क़त के बारे में कहते हैं कि ओफ़िली को अंग्रेज़ी भी आती है और गांव में संजय यादव जैसे कुछ नौजवान हैं, जो अच्छी अंग्रेज़ी जानते हैं तो संवाद में कोई ख़ास दिक्क़त नहीं हुई और अब तो टूटीफूटी भोजपुरी वे लोग भी बोल और समझ लेते हैं.

विरजीनी बताती हैं कि मंदिर के पुजारी बाबा हरिदास के भंडारे का ख़ालिस शाकाहारी खाना भी उन्हें ख़ूब भला लगता है. साथ खेलने वाले गांव के बच्चों टॉम को कब कृष्ण पुकारना शुरू किया, किसी को याद नहीं मगर अब वह किसी के लिए कृष्ण तो किसी के लिए कृष्णा बन गया है.


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