संवाद बुक शेल्फ़ | किताबों की दुनिया की ख़बर

संवाद बुकशेल्फ़ | ऐसे में जब शहरी लैंडस्केप से किताबों की दुकानें ग़ायब होती जा रही हैं और ऑनलाइन ठिकाने या प्रकाशक ही किताबें ख़रीदने का अकेला ज़रिया बनते जा रहे हैं, यह स्तंभ हिंदी और अंग्रेज़ी की ताज़ा छपी किताबों से आपको परिचय कराने और उनके बारे में मुख़्तसर जानकारी देने की कोशिश है. इनमें संपादक की पसंद की किताबें भी शामिल होंगी. पढ़ने वालों की सहूलियत के लिए किताबों की ऑनलाइन उपलब्धता के लिंक उनके शीर्षक में ही निहित हैं. -सं
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नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा ‘दियासलाई’ में वह अपने संघर्षपूर्ण जीवन की कहानी के साथ ही अपनी उन कोशिशों के बारे में बताते हैं जो उन्होंने भारत और दुनिया भर के बच्चों की मुक्ति और कल्याण के लिए कीं. ‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ जैसे महा-आन्दोलन के विचार को साकार करने के लिए उन्होंने दुनिया के 186 देशों की यात्रा की, लाखों बच्चों से सम्पर्क किया और उन्हें आज़ादी के विचार के बारे मं बताया. शिक्षा के लिए भी उन्होंने विश्वव्यापी अभियान चलाया. उन्हें अब तक मिले सम्मान और पुरस्कारों से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण वे उन बच्चों की मुस्कराहट को मानते हैं, जो हर तरफ़ से निराश और समाज के क्षुद्र स्वार्थों के मारे हुए थे. यह हमें उन भयावह तथ्यों से भी रूबरू कराती है, जो दुनिया के विराट नक़्शे पर बिलखते बच्चों का पता देते हैं.
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मधु कांकरिया की ‘मेरी ढाका डायरी’ एक प्रबुद्ध व्यक्ति की आँख से एक देश और उसके समाज की थाह लेती है. वह बांग्लादेश, जो कभी हिंदुस्तान ही था, और जिससे हमारी हमेशा से साझेदारी रही है, ऐसी गहरी साझेदारी कि वक़्त की करवटों के चलते हमारे बीच नई सरहद खिंच जाने के बावजूद, दोनों देशों की आम अवाम के दिल में अब भी बहुत कुछ है, जो एक-सा धड़कता है. यह किताब वक़्त की उन करवटों और उस ‘एक-सी धड़कन’, दोनों का जायज़ा लेती है, लेखक न सिर्फ़ वहाँ के हालात बल्कि उन हालात से हासिल सूत्रों से उन कारणों की शिनाख़्त भी करती चलती हैं, जिनसे ‘सोनार बांग्ला’ की श्यामल भूमि का सहज हास बाधित हो रहा है.
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अरुण देव के इस कविता संग्रह में सौ कविताएं हैं, और जैसा कि इसका शीर्षक से ही पता चलता है कि मृत्यु इन कविताओं के केंद्र में हैं. अफने प्राक्कथन में राधावल्लभ त्रिपाठी ने कहा है कि ये कविताएं जीवन और मृत्यु को पुनः परिभाषित करती हुई दोनों की रहस्यात्मकता के बारे में अनसुलझे प्रश्न छोड़ जाती है. सुलझाने में कविता नहीं बनती. पर वह उलझन के बारे में समझ ज़रूर देती है. इससे बढ़कर वह हमें अमरत्व का अनुभव देती है. अमरत्व निर्भय होने में है. निर्भय होने पर मृत्यु अनन्त का अनुभव बन जाती है. मृत्यु का निर्भय होकर सामना करना ही अमर होना है. ख़ालिद जावेद मानते हैं कि अरुण देव की ‘मृत्यु:कविताएं’हमें भयभीत नहीं करतीं, केवल उदास कर जाती हैं. वह खो जाने का सौंदर्य रचते हैं.
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अख़बारनवीसी और शिक्षण की दुनिया का तजुर्बा रखने वाली प्रतिभा कटियार की पहचान एक संवेदनशील कवि की रही है, यह उनका पहला उपन्यास है. तरह-तरह के ख़ानों में बँटे हमारे समाज के यथार्थ से मुठभेड़ करने वाला यह उपन्यास तमाम किरदारों और उनके हालात के बरक्स प्रेम और मनुष्यता की गाथा रचता है, साथ ही हमारे समय की एक बड़ी विडम्बना पर उँगली रखता है. बक़ौल प्रियदर्शन, प्रतिभा घर-परिवार और समाज के सारे पूर्वाग्रह और पाखंड जैसे तार-तार करने पर आमादा हैं. वह ज़रा देर के लिए भी यह बात ओझल नहीं होने देतीं कि यह समाज बहुधा कुछ लोगों के साथ बहुत अमानुषिक बरताव करता है. उपन्यास एक साँस में पढ़ा जा सकता है पर इसके बाद गहरी और लंबी साँस की ज़रूरत पड़ती है.
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कैफ़ी हाशमी की सात कहानियों का यह संग्रह अपनी कहन के तरीक़े और भाषायी ताज़गी के लिहाज़ से एकदम नया और अनूठा है. बक़ौल उदय प्रकाश, ‘शिया बटर’, ‘कैफ़े कॉफ़ी डे’ और ‘बंकर’ जैसी कहानियों का आना कहानियों की प्रचलित निरन्तरता में एक नए प्रस्थान की तरह है. जैसे किसी ट्रेन ने अपनी पटरी और यात्री ने अपना रास्ता बदल दिया हो. कैफ़ी हाशमी की कहानियाँ बहुत गहरी और एकाग्र संवेदना के साथ उस दुर्लभ संरचना को प्रत्यक्ष करती हैं, जहाँ बाह्य वस्तुजगत की समस्त सचल और अचल उपस्थितियाँ एक-दूसरे में पिघलती और विलीन होती हुई क़िस्से के उस जादू को पैदा करती हैं, जो पुरानी फ़ैंटसी और जादुई यथार्थवाद के बाद का जादू है.
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