बक़ौल नामवर सिंह, “छायावाद का अर्थ चाहे जो हो, लेकिन व्यावहारिक दृष्टि से यह प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी की उन समस्त कविताओं का द्योतक है, जो 1918 से 36 ईस्वी के बीच लिखी गईं. [….]
क़ासिम सुबह सात बजे लिहाफ़ से बाहर निकला और ग़ुसलख़ाने की तरफ़ चला. रास्ते में, ये इसको ठीक तौर पर मालूम नहीं, सोने वाले कमरे में, सहन में या ग़ुसलख़ाने के अंदर उस के दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो किसी को उल्लू का पट्ठा कहे. बस सिर्फ़ एक बार ग़ुस्से में या तंज़िया अंदाज़ में किसी को उल्लू का पट्ठा कह दे. [….]
बलराज साहनी एक जनप्रतिबद्ध कलाकार, हिन्दी-पंजाबी के महत्वपूर्ण लेखक और संस्कृतिकर्मी थे. जिन्होंने अपने काम से भारतीय लेखन, कला और सिनेमा को एक साथ समृद्ध किया. उनके जैसे कलाकार बिरले ही पैदा होते हैं. एक मई, 1913 को रावलपिंडी में जन्मे बलराज साहनी की शुरूआती तालीम गुरुकुल में हुई, जहां उन्होंने हिन्दी और संस्कृत की पढ़ाई की. आला तालीम के लिए लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज पहुंचे [….]