‘‘मैं ‘शकील’ दिल का हूं तर्जुमा, कि मुहब्बतों का हूं राज़दां/ मुझे फ़ख़्र है मेरी शायरी, मेरी ज़िंदगी से जुदा नहीं’’ शकील बदायूंनी की ग़ज़ल का यह शे’र वाकई उनकी पूरी ज़िंदगी और फ़लसफ़े की तर्जुमानी करता है. उन्होने अपनी ग़ज़लों, गीतों में हमेशा दिल की बात की, मुहब्बत के दिलफ़रेब अफ़साने लिखे. [….]