सिर्फ़ मनोरंजन या कलात्मक अभिव्यक्ति (या कभी-कभी दोनों ही) के लिए फ़िल्में बनाने की अवधारणा बीते ज़माने की बात लगने लगी है. वैश्विक परिदृश्य में, ख़ासतौर पर नए दौर के ईरानी सिनेमा के मामले में तो यह बिल्कुल लागू नहीं होता. [….]
उर्दू अदब और फ़िल्म की दुनिया में असद भोपाली ऐसे बदक़िस्मत शायर-गीतकार हैं, जिन्हें अपने काम के मुताबिक वह शोहरत, मान-सम्मान और मुकाम हासिल नहीं हुआ, जिसके कि वे हक़दार थे. [….]
‘इंडिया टाइम्स मूवीज़’ ने सन् 2005 में हिन्दी की 25 सर्वकालिक फ़िल्में चुनीं तो ‘गर्म हवा’ को इस सूची में जगह मिली. वही ‘गर्म हवा’ जो 1974 में ‘कांस फ़िल्म फेस्टिवल’ में गोल्डन पॉम के लिए और भारत की ओर से ‘ऑस्कर’ के लिए भी नामित हुई. [….]
यह गुज़रे ज़माने की बात है, बहुत पहले की बात कि एक थी रॉयल बायस्कोप कम्पनी और एक थे हीरालाल सेन. फ़ोटोग्राफ़ी के शौक़ीन हीरालाल सेन ने भारतीय सिनेमा की दुनिया में अविस्मरणीय काम किए, मगर बदक़िस्मती से उन्हें और उनके काम को फ़िल्म इतिहास में वह मक़ाम नहीं मिल सका, जिसके वह हक़दार थे. [….]
सत्यजीत रे और उनकी फ़िल्मों के प्रशंसकों के लिए एक ख़ास ख़बर है. रे के जन्म शताब्दी वर्ष के मौक़े पर फ़िल्म्स डिविज़न आज से ‘मास्टरस्ट्रोक्स’ के नाम से ऑनलाइन फ़िल्म फ़ेस्टिवल आयोजित कर रहा है. यह फ़ेस्टिवल 6 मई तक चलेगा. [….]
शानदार शख़्सियत और बेहतरीन कुदरती अदाकारी के मालिक इरफ़ान खान ने यह दुनिया छोड़ दी. उन्हें अभी और रहना था, वह रहना भी चाहते भी थे लेकिन क़ायनात न जाने कौन सा क़िरदार लेकर उनकी तलाश में थी. उसके इस नाटक को आग लगे, उस पर बिजली गिरे, बादल बरसे. [….]
एक गोवा के हवाई अड्डे पर फ़िल्म फ़ेस्टिवल (इफ़्फ़ी) के लोगो वाले पोस्टर और उसमें एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया की सहभागिता के उल्लेख की बात देखकर एक उम्मीद जगी कि शायद हवाई अड्डे से इफ़्फ़ी के ठिकाने तक डेलीगेट्स को ले जाने के लिये कोई इंतज़ाम हो. [….]
सन् 1984 में दिसम्बर की दूसरी रात को भोपाल के लोगों पर जो कुछ गुज़रा, उसकी कितनी ही तस्वीरें दुनिया देख चुकी है, कितनी ही कहानियां-किताबें लिखी और पढ़ी जा चुकी हैं. पर क्या सब कुछ कहा-सुना जा चुका है? [….]
सत्तर का दशक रहा होगा. बच्चन के उफ़ान के साथ ही काका का सितारा तक़रीबन डूबने को था. सिनेमाघरों से ज्यादा इसे सड़कों पर महसूस किया जा सकता था. इस दौर की तफ़्सील यह थी [….]