अपने बेशतर लेखन में मध्य-निम्न मध्यमवर्गीय मुस्लिम समाज का यर्थाथपरक चित्रण करने वाले शानी पर ये इल्जाम आम था कि उनका कथा संसार हिंदुस्तानी मुसलमानों की ज़िंदगी और उनके सुख-दुख तक ही सीमित है. और हां, शानी को भी इस बात का अच्छी तरह एहसास था. [….]
क़ासिम सुबह सात बजे लिहाफ़ से बाहर निकला और ग़ुसलख़ाने की तरफ़ चला. रास्ते में, ये इसको ठीक तौर पर मालूम नहीं, सोने वाले कमरे में, सहन में या ग़ुसलख़ाने के अंदर उस के दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो किसी को उल्लू का पट्ठा कहे. बस सिर्फ़ एक बार ग़ुस्से में या तंज़िया अंदाज़ में किसी को उल्लू का पट्ठा कह दे. [….]
बलराज साहनी एक जनप्रतिबद्ध कलाकार, हिन्दी-पंजाबी के महत्वपूर्ण लेखक और संस्कृतिकर्मी थे. जिन्होंने अपने काम से भारतीय लेखन, कला और सिनेमा को एक साथ समृद्ध किया. उनके जैसे कलाकार बिरले ही पैदा होते हैं. एक मई, 1913 को रावलपिंडी में जन्मे बलराज साहनी की शुरूआती तालीम गुरुकुल में हुई, जहां उन्होंने हिन्दी और संस्कृत की पढ़ाई की. आला तालीम के लिए लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज पहुंचे [….]
इतिहास में जहां भी महाराजा रंजीत सिंह के ‘खालसाराज’ का ज़िक्र होता है, हरि सिंह नलवा के बग़ैर पूरा नहीं होता. पंजाब की सरज़मीं को अफ़गानों के क़ब्ज़े से छुड़ाने के सैन्य अभियानों की सफलता का सेहरा इसी बहादुर योद्धा के सिर बंधता रहा. उनके कौशल के क़िस्से उन्हें मिथक कथाओं के नायक सा दर्जा देते हैं. [….]
राजनेताओं की पहचान इस आधार पर होती रही है कि वे अपने समय में मनुष्य और मनुष्यों के समुदायों को किन्हीं उच्च आदर्शों, जीवन मूल्यों और आंतरिक सबलीकरण के लिए किस प्रकार प्रेरित करते हैं, वे अपने समकाल को कितना बदल पाते हैं. उनके जीवन के बाद भी यह उपलब्धियाँ क्या किसी नैतिक व्यवस्था को जन्म दे पाती हैं, क्या वे कोई नयी राजनीति और मानव उत्थान की किसी परियोजना को आगे ले जा पाती हैं? [….]