कला में एब्सट्रेक्ट जैसा कुछ नहीं होता
कला | वी.एस. गायतोंडे.
यह कहने के बजाय कि मैं पॉल क्ली से प्रभावित था, यह कहना मुनासिब होगा कि उनके काम में अद्भुत रूपों, रंग संयोजन और रेखाओं की ख़ूबसूरती ने मुझे आकर्षित किया था. फ़ौरी तौर पर यह सब मुझे अपनी पेंटिंग की बुनियाद के लिहाज से संगत लगा. वॉटर कलर या ऑयल कलर में काम करते हुए मुझे ऐसा लगता जैसे मैं ख़ुद पॉल क्ली होऊं.
मैं काम नहीं करता, मैं सुस्ताता हूं और इंतज़ार करता हूं, और फिर मैं कैनवस पर कुछ रंग लगाता हूँ. इंतज़ार, इंतज़ार और इंतज़ार…एक काम और दूसरे काम के बीच यह पेंटिंग का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है.
परिचय
सन् 1948 में जे.जे.स्कूल से कला की पढ़ाई करने के बाद वासुदेव एस.गायतोंडे बाँबे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप में शामिल हो गए. 1956 में उन्होंने पूर्वी यूरोप के देशों में आयोजित इंडियन आर्ट एग़्जिबिशन में शिरकत की. 1964 में उन्हें रॉकफेलर फ़ेलोशिप मिली और 1971 में पद्मश्री. बेहद संकोची स्वभाव वाले गायतोंडे ख़ुद को एब्सट्रेक्ट पेंटर नहीं मानते थे. उनका मानना था कि कला में एब्सट्रेक्ट जैसा कुछ नहीं होता. इसीलिए वह अपने चित्रों को ‘नॉन-आब्जेक्टिव’ कहा करते थे. बुद्धज़्म का उनका पर गहरा असर था, और यह उनके चित्रों में भी दिखाई देता है. समकालीन भारतीय चित्रकार में वह पहले थे, जिनके चित्र सबसे महंगे बिके.
जन्म | 1924, नागपुर.
निधन | 10 अगस्त, 2001. दिल्ली.
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