केरल | मदद से ख़ुश मगर लौटने की बेचैनी

  • 9:38 pm
  • 29 March 2020

केरल के अलग-अलग हिस्सों में (प्रवासी) अतिथि कामगारों के खाने-पीने और रहने के इंतज़ाम में सरकार ने जो तत्परता दिखाई है, उसका नतीजा यह तो ज़रूर है कि इन लोगों के सामने खाने-रहने की कोई मुश्किल नहीं. यूपी के अफ़सरों के समन्वय से केरल की पुलिस ऐसे लोगों तक पहुंच रही है और इंतज़ाम भी कर रही है.
इसके बावजूद तमाम ऐसे लोग हैं, जिनकी बेचैनी किसी तरह घर वापस लौटने की है. राजस्थान के कई मजदूरों का जत्था तो पैदल और ट्रकों पर सवार होकर वहां से निकल भी पड़ा. हालांकि पुलिस ने इनमें से कुछ को वापस लौटाया है. ‘संवाद’ ने केरल में ऐसे ही कुछ लोगों से बात की तो मालूम हुआ कि खाने-रहने के लिहाज़ से उनकी दिक़्क़तें इतनी नहीं हैं, जितनी कि बंदिशों के बीच अपने लोगों के बीच पहुंच जाने की.

हसीब | रामपुर
स्वार में बादली टांडा के हसीब अपने बड़े भाई और उनकी पत्नी के साथ कसरगोड में हैं. बढ़ईगिरी उनका ख़ानदानी पेशा है. उनके और भाई के साथ ही नौ और लोग हैं, जो चार कमरों के घर में किराये पर रहते हैं. हसीब कहते हैं, ‘लॉकडाउन का एलान होने पर पास में जो पैसा था, उससे राशन-पानी ख़रीदकर रख लिया था. राशन तो अभी दो-चार चल जाएगा. हम लोग घर लौटना चाहते हैं. पुलिस के लोगों से भी फ़ोन पर यही दरख़्वास्त की तो उन्होंने कहा कि जब ट्रेन चालू होगी तो हम लोगों को भी भेज देंगे.’
यह पूछने पर कि जब आराम से हैं तो लौटने की इतनी बेताबी क्यों हैं, हसीब ने रामपुर में अपने घर वालों का हवाला दिया. यहां उनकी अम्मी और वालिद भी हैं. वह बताते हैं, ‘एक तो अब्बू की तबियत ख़राब है. वह अकेले पड़ गए हैं. फ़ोन पर उन्हें इस बात का यक़ीन नहीं दिला पाता कि हम लोग ख़ैरियत से हैं. वह बार-बार कहते हैं कि कमाई बिल्कुल मत करो, बस किसी तरह घर वापस आ जाओ.’ उनकी दिक़्क़त कामबंदी के इन दिनों में मकान मालिक का तगादा है, जिसे किराये के साढ़े बारह हज़ार रुपये देने हैं. बताया कि वह आज भी आया था.

जावेद | मेरठ
अलप्पूझा ज़िले के कायमकुलम क़स्बे में जावेद और उनके साथ के दो और लोग हैं, जो मेरठ में लिसाड़ी रोड के रहने वाले हैं. फेरी लगाकर लोअर बेचना उन लोगों की रोज़ी है. इस बार वह जनवरी में गए थे मगर हमेशा की तरह लौट नहीं पाए हैं. उनके पड़ोस वाले कमरों में भी मेरठ के पांच बाशिंदे हैं, जो कटिंग के कारीगर हैं और सैलून में काम करते हैं.
जावेद ने बताया कि दिन में पुलिस स्टेशन और कॉरपोरेशन से फ़ोन आया था. फिर वो लोग आ भी गए थे, उनके साथ योगी जी की तरह कपड़े पहने हुए साहब भी थे. ज़रूरत भर का राशन दे गए हैं और कह गए हैं कि ख़त्म हो जाए तो फ़ोन कर देना, फिर आ जाएंगे. मकान मालिक निज़ाम भी ख़ैरख्वाह हैं. ज़रूरत के बारे में पूछ गए थे. हेल्पडेस्क का नम्बर भी उन्होंने ही दिया. उनकी कुल मुश्किल कमरे में बंद होकर रह जाने की है. नीचे उतर बाहर निकलने की भी इजाज़त नहीं है. कोट्यम में भी उनकी पहचान के आठ लोग हैं, उन सबसे और घर वालों से फ़ोन पर बात करके वक़्त काट रहे हैं. इंतज़ार है कि लॉकडाउन पूरा होने का, अब तो तभी घर लौटना मुमकिन हो पाएगा.

अभिमन्यु सिंह | सवाई माधोपुर
वह रेलवे के मुलाज़िम हैं, कन्नूर में रहते हैं. उन्हें ख़ुद कोई दिक़्क़त नहीं और न ही उनके आसपास रहने वाले पच्चीस-तीस परिवारों को. उन्होंने उन मजदूरों की मुश्किल का ख़्याल करके हेल्पडेस्क को फ़ोन किया, जो यूपी और बिहार के हैं और संगमरमर लगाने वाले मजदूरों का काम करते हैं. बताते हैं कि केरल में पांच-सात हज़ार ऐसे लोग हैं, जो सिर्फ़ घरों में मार्बल लगाने का काम करते हैं. वह बताते हैं कि उनके बहुत समझाने के बाद भी 20-25 मजदूर ढाई हज़ार किलोमीटर के सफ़र पर पैदल ही निकल पड़े हैं. बक़ौल अभिमन्यु, ‘इस तरह तो 45 दिन में अपने घरों को पहुंच पाएंगे. मैंने यह बताकर उन्हें डराने-समझाने की कोशिश की मगर मालूम नहीं किसने उन्हें समझा दिया कि लॉकडाउन तीन महीने रहेगा. बस, इसी से वे परेशान हो गए. कुछ लोग ट्रक से भी निकले हैं. दुआ कर रहा हूं कि पुलिस को मिल जाएं और पुलिस उन्हें लौटा लाए. मंगलूर में झारखंड के ऐसे ही लोगों को पुलिस ने समझा-बुझाकर लौटा दिया है.’

राहुल सिंह | बलिया
बेल्थरा रोड के एक गांव के राहुल पिछले पंद्रह साल से एरनाकुलम में रहते हैं. वह ग्रिल बनाने वाले एक कारख़ाने में मुलाजिम हैं. लॉकडाउन के बाद राशन की मुश्किल होने लगी तो उन्होंने कहीं से फ़ोन नम्बर जुटाकर दिन में यूपी की हेल्पडेस्क को फ़ोन किया. शाम को हुई बातचीत में उन्होंने ‘संवाद’ को बताया कि पुलिस वालों का फ़ोन आ गया था और उनकी दिक़्क़त का निदान हो गया.

सद्दाम | मुरादाबाद
वह कसरगोड में रहते हैं. बढ़ई का काम करते हैं. मुरादाबाद में मुबारकपुर बंद के बाशिंदे हैं. असमौली, मंसूरपुर और नरैटा से आए तमाम लोग हैं, जो वहीं रहते हैं. बक़ौल सद्दाम, उनके हेल्प डेस्क को फ़ोन करने के बाद पुलिस के लोग आए थे हालांकि वे उन तक नहीं पहुंचे और दूसरे लोगों से बातचीत करके फिर आने का वायदा करके लौट गए. वहां रह रहे लोगों की मुश्किल तेज़ी से ख़त्म हो रहे राशन की है.

कवर फ़ोटोः कोविड हेल्पडेस्क फ़ॉर यूपी रेज़िडेन्ट्स इन केरल के फ़ेसबुक पेज से

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