घंटे गिन-गिन खटना, दाने गिन-गिन पेट भरना और दिन गिन-गिन जीना. बीत गए दिन का मलाल नहीं और न ही आने वाले दिन की फिकर. दूसरे दिहाड़ी मजूरों की तरह ही बीत रही थी घूरपुर के दशरथ की ज़िंदगी. [….]