पिछली गर्मियों में इतवार का रोज़ था. हमारे हां चिराग़ में बत्ती पड़ते ही खाना खा लिया जाता है. बच्चे खाना खा कर सो गए थे. चची ने खाना निमटा कर इशा की नमाज़ की नीयत बांधी थी, नौकर बावर्चीख़ाने में बैठे खाना खा रहे थे, चचा छक्कन बनियान पहने, तहमद बांधे, टांग पर टांग रखे, चारपाई पर लेटे मज़े मज़े से हुक़्क़े के कश लगा रहे थे कि दफ़्अतन गली में से शोर व गुल की आवाज़ आई. [….]