प्रयागराज | शरद कोकास की एक कविता है – देह. देह के विकास की गाथा और इसके इतिहास का आख्यान भी. तमाम सभ्यताओं की विकास यात्रा कराती यह कविता देह के मशीनों में तब्दील होते जाने के साथ ही इंसानी सभ्यता पर भावी ख़तरों से हमें आगाह भी करती है. [….]