वाजिदअली शाह का समय था. लखनऊ विलासिता के रंग में डूबा हुआ था. छोटे-बड़े, गरीब-अमीर सभी विलासिता में डूबे हुए थे. कोई नृत्य और गान की मजलिस सजाता था, तो कोई अफीम की पीनक ही में मजे लेता था. जीवन के प्रत्येक विभाग में आमोद-प्रमोद का प्राधान्य था. [….]
संध्या का समय था. डॉक्टर चड्ढा गोल्फ़ खेलने के लिए तैयार हो रहे थे. मोटर द्वार के सामने खड़ी थी कि दो कहार एक डोली लिए आते दिखाई दिए. डोली के पीछे एक बूढ़ा लाठी टेकता चला आता था. डोली औषाधालय के सामने आकर रूक गई. [….]