इधर जब से दुनिया तिजारत के चंगुल में फंस गई है. उस वक़्त से हर शय तराज़ू में तुलने और तिजारत के सांचे में ढलने लगी है. हमें उस नौजवान की बात अब भी याद है जिसने एक कुतुबफ़रोश की दुकान पर खड़े हो कर कुतुबफ़रोश से कहा था, “जनाब-ए-वाला! मुझे कृष्ण चंदर के दो किलो अफ़साने, राजिंदर सिंह बेदी की डेढ़ किलो कहानियां और फ़ैज़ की चार किलो ग़ज़लें दीजिए.” [….]