यह वसंतोत्सव था. संकरे रास्तों और गलियों की ठंडी छायाओं से ढेर सारे लोग चमकीले सजे-धजे बादलों की तरह निकल रहे थे. बाड़े से छूटे सफ़ेद चमकते खरगोशों के मोटे-मोटे झुण्डों की मानिंद ये बादल बस्ती के बाहर चांदी-सी चमचमाहट वाले समंदर की ओर लपके जा रहे थे. उन्हें मेले में पहुंचने की जल्दी थी. [….]