क़ासिम सुबह सात बजे लिहाफ़ से बाहर निकला और ग़ुसलख़ाने की तरफ़ चला. रास्ते में, ये इसको ठीक तौर पर मालूम नहीं, सोने वाले कमरे में, सहन में या ग़ुसलख़ाने के अंदर उस के दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो किसी को उल्लू का पट्ठा कहे. बस सिर्फ़ एक बार ग़ुस्से में या तंज़िया अंदाज़ में किसी को उल्लू का पट्ठा कह दे. [….]