अप्रैल के उत्तरार्द्ध की एक रात का पिछला पहर. खुला आकाश. वास्तव में खुला आकाश, क्योंकि आकाश के जिस अंश में धूल या धुन्ध होती है वह तो हमारे नीचे है. और धूल उसमें है भी नहीं, हलकी-सी वसन्ती धुन्ध ही है, बहुत बारीक धुनी हुई रुई की-सी:
यह ऊपर आकाश नहीं, है
रूपहीन आलोक-मात्र. [….]