बारह बरस बाद बेगुनाह मगर जो खोया उसकी भरपाई कहां

  • 7:19 am
  • 6 November 2019

रामपुर में सीआरपीएफ़ के ग्रुप सेंटर पर 31 दिसम्बर 2007 की रात को हुए हमले में अदालत ने चार लोगों को मौत की सज़ा सुनाई है. एक नवम्बर को दिए फ़ैसले में जिन दो लोगों को अदालत ने बेक़सूर मानते हुए बरी किया है, बहेड़ी के गुलाब ख़ां उनमें से एक है. गुलाब पर आतंकवादियों की मदद करने का इल्जाम था.

अपनी बेगुनाही साबित करने में गुलाब को क़रीब बारह बरस लग गए. उनके माथे पर लगा दाग़ तो हट गया, मगर गुलाब की मां उनके जेल जाने का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई और गुलाब-गुलाब करते हुए दुनिया से चली गईं. घर लौटे गुलाब की आपबीती, उन्हीं की ज़बानी,
किसी बेकसूर पर आतंकवादी होने का झूठा ठप्पा न लगाया जाए. बहुत दर्द होता है. मैं टूट चुका हूं. मेरा परिवार बुरी तरह टूट गया है. जेल में दिन गिन-गिन कर 11 साल 10 महीने मैंने कैसे काटे हैं, इसकी तफ़्सील बता पाना मुमकिन नहीं. आप सिर्फ़ अंदाज़ लगा सकते हैं कि इस दौरान मेरे घर वालों ने कैसी-कैसी मुसीबतें झेली हैं?
यह कहते-कहते गुलाब रो पड़े थे. क़रीब बारह साल बाद उन्होंने जेल से बाहर खुले में आकर सांस ली, तो जेल में बिताए दिनों को याद करते हुए उनका जिस्म कांपने लगा. उनके भाई कमल ने सहारा देकर संभाला. कमल ही तो गुलाब की बेगुनाही साबित करने के लिए अब तक रात-दिन एक किए हुए थे. कोर्ट-कचहरी से लेकर वकील के चैम्बर तक की खाक़ उन्होंने अकेले ही छानी, और फिर नवम्बर की पहली तारीख़ उनके और उनके घर वालों के दिलों पर कुछ उसी तरह दर्ज हो गई, जैसे सन् 2008 की फरवरी की 9 तारीख उन्हें कभी नहीं भूलती.
फरवरी की उस सुबह एटीएस के लोग गुलाब को उनके घर से उठा ले गए थे. गुलाब का घर बहेड़ी के मोहल्ला शाहगढ़ की बीच बस्ती में है. एटीएस ने जब उनको घर से उठाया तो तमाम लोगों ने उन्हें ले जाते देखा था. तब उनके घर वालों को बताया गया कि बरेली में हुए किसी झगड़े के बारे में पूछताछ करने के लिए बहेड़ी थाने तक ले जा रहे हैं. गुलाब का कहना है कि दो रोज़ तक तो वे उनको लेकर इधर से उधर घूमे. एक चीनी मिल के गेस्ट हाउस, एक बन्द पड़े होटल में ठहराते हुए रामपुर के सिविल लाइन्स थाने ले गए.
मैं कुसूर पूछता, और वे कहते कि अभी छोड़ देंगे
बक़ौल गुलाब, ‘ मैं उन लोगों से लगातार अपना कुसूर पूछ रहा था और वे लोग कहते रहे कि अभी छोड़ देंगे. सिविल लाइन्स थाने में शाम को वहां के एक अफसर ने एकाएक सिपाही से मुझे हवालात में डालने को कहा. मैंने फिर पूछा था कि साहब मेरा कुसूर तो बता दो. इस बार उसने जो ज़बान इस्तेमाल की, वह बताने लायक नहीं है. ठंड के दिन थे. हवालात में जो कम्बल था, उसमें इतनी धूल थी कि ओढ़ना मुश्किल. लेकिन ठंड से निज़ात पाने का कोई और तरीक़ा भी न था. खाने तो दूर, किसी ने पानी भी नहीं दिया. फिर अगले रोज़ डॉक्टर के पास ले गए. वहां कागज़ तैयार रखे थे. मुझे साथ ले जाकर कागज़ उठाए भर गए और फिर जेल ले जाने लगे. मैंने फिर पूछा, तो उन्होंने मुझे बताया कि सीआरपीएफ के सेंटर पर आतंकवादी हमले के मामले में मुझे जेल भेज रहे हैं. यह सुनकर तो जैसे मेरी जान ही निकल गई. उन लोगों ने मुझे आतंकवादी क़रार दे दिया. मुझे लगा कि अब मैं कभी नहीं छूट पाऊंगा.’
बाल नहीं कटाए ताकि शक़्ल से ख़ूखार लगूं
जेल में तीन महीने तक घर वालों को मुझसे मिलने नहीं दिया गया. जेल में न दाढ़ी बनाने और न ही बाल कटाने दिए गए. अदालत में मेरे वकील ने बाल न कटाने की वजह जाननी चाही. अदालत ने भी इस बारे में पूछा कि क्या शिनाख़्त कराने की वजह से ऐसा किया जा रहा है? मंशा शायद यही थी कि शक्ल से मैं खूंखार नज़र आऊं. बाद में अदालत के दख़ल के बाद बाल कटाने दिए गए.
‘मैं टूट गया हूं. पूरी तरह से टूट गया हूं. इतने बरस में मैंने बहुत कुछ खो दिया. मेरी मां मुझे याद करते-करते दुनिया से चली गईं और मैं उनको कांधा तक नहीं दे पाया. मुझे अपनी मां की क़ब्र पर मिट्टी देने तक की छूट भी नहीं मिली .मेरी ख़ाला का इन्तक़ाल हो गया, और मुझको उनका चेहरा देखना भी नसीब नहीं हुआ. जब मुझे नाहक़ जेल में डाल दिया गया, मेरा बेटा डेढ़ बरस का था. वह किन हालात में बड़ा हुआ? बाप के लाड़ के बग़ैर ही उसका बचपन गुज़र गया. मेरी दो बच्चियां पढ़ाई नहीं कर पाईं. मेरे भाइयों ने मेरा मुकदमा लड़ने के लिए सब कुछ बेच दिया. मेरा घर बर्बाद हो गया. मेरे इन सवालों के जवाब कौन देगा? ख़ाक हो गई मेरे घर की ख़ुशियां कोई लौटा सकता है? अब जब मैं घर लौटा हूं तो कई बच्चे इतने बड़े हो गए हैं कि उनको पहचान ही नहीं पाया.’
‘रोज़ाना मर-मर कर जिया हूँ मैं. जेल में गुज़रे दिनों में हर रोज़ मरता था. एक छोटी सी कोठरी में तन्हा था. पानी भी बस सामने वाले के रहमोक़रम पर मिलता था. न जाने कितने दिन तो ऐसे गुज़रे, जब दिन-दिन भर प्यासा रहा. कोठरी से पेशाब करने जाने वक़्त भी हथकड़ी डाल दी जाती. जेल में मुझ बेक़सूर के साथ जो सलूक हुआ, उसका ख़्याल ही दहलाने वाला है. जेल से निकला हूं तो लगता है कि दोबारा पैदा होकर फिर से दुनिया में आया हूँ.’
अल्लाह ने बचा लिया, वरना…
मैंने तो उम्मीद छोड़ दी थी. जेल में दो बार मेरे दिल में शदीद दर्द उठा. लगा कि अब नहीं बचूंगा, लेकिन अल्लाह ने मुझे बचा लिया. फिर लगने लगा कि मुझे इंसाफ ज़रूर मिलेगा. अल्लाह ने मदद की, और मैं बा-इज़्ज़त बरी हुआ. मगर मेरी बेगुनाही साबित करने के फेर में घर वालों को बड़े इम्तहान से गुज़रना पड़ा. घर चलाने और मेरी ख़ातिर भाग-दौड़ में पांच बीघा ज़मीन बिक गई. मेरी वर्कशॉप बिक गई. छोटा भाई शबाब इन्वर्टर का काम करता है. बड़ा भाई कमल स्टोन क्रेशर पर मुलाज़िम था, लेकिन पैरवी में आए दिन भाग-दौड़ के चलते उसका काम भी छूट गया.
अदालत पर था भरोसा
गुलाब कहते हैं कि बिना किसी जुर्म के मुझे जेल भेजकर पुलिस ने नाइंसाफ़ी की, लेकिन अदालत ने इंसाफ़ किया. इंसानियत के नाते तो सरकार को हमारे परिवार की मदद करनी चाहिए. पुलिस को इतनी हिदायत तो देनी ही चाहिए कि किसी बेगुनाह को झूठमूठ हरगिज़ न फंसाया जाए. बहुत ही दर्दनाक और तकलीफदेह होता है. परिवार उजड़ जाता है.


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