किताब | द मॉनेस्ट्री ऑफ़ सॉलिट्यूड

  • 6:04 pm
  • 27 May 2024

यह सफ़रनामा तीसरी सदी में अधूरे छूट गए एक सफ़र को पूरा करने की ऐसी दास्तान है, जिसमें तमाम संस्कृतियों, सभ्यताओं, जाति, नस्ल, धर्मों और फ़लसफ़े की विविधताओं वाली छवियाँ हैं और उन्हें एक सूत्र में बाँधने वाले तत्वों की तलाश भी. मोइन मीर का यह सफ़रनामा ऐसा दस्तावेज़ है, जिसमें अतीत की परछाइयों की तलाश है, उजालों में चमकती बेशुमार गलियाँ और इमारतें हैं, और इंसानी सभ्यता के विकास, उसके दर्शन और आध्यात्मिक मान्यताओं का विस्तृत ख़ाका भी है.

यह तीसरी शताब्दी की बात है, जब उपनिषदों और भारतीय दर्शन के गूढ़ तत्वों से प्रभावित प्राचीन यूनान के दार्शनिक प्लोटिनस ने रोम से भारत तक सफ़र करने का इरादा किया. अफ़सोस कि अपनी यात्रा बाइज़ेन्टाइन (वर्तमान इस्तांबुल) में ही ख़त्म करके उन्हें वापस रोम लौट जाना पड़ा.

इतनी सदियाँ गुज़र जाने के बाद मोइन मीर ने प्लोटिनस के नक्शेक़दम पर चलते हुए वह अधूरा सफ़र पूरा किया है. वह विशाल सभ्यताओं के धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहलुओं से गुज़रते हुए उनमें एकात्म या अद्वैत के उन्हीं सिद्धांतों की तलाश करते हैं, वही मनुष्यत्व और एकता खोजते हैं, जो प्लोटिनस का लक्ष्य था.

यह सफ़रनामा आपको रोम और मिस्र और अजमेर की गलियों में ले जाता है, शहरों, जगहों, इमारतों और वहाँ के लोगों से मिलाता है. किताब में मिस्र के पिरामिडों और नील नदी के आसपास, इस्तांबुल के हागिया सोफिया कैथेड्रल की चटख़ छवियाँ मिलती हैं, जो मस्जिद बना और कमाल अतातुर्क के दौर में जिसे संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया और जो अब फिर से मस्जिद है. और अजमेर में ख़्वाजा की दरगाह की वह देग़ भी, जहाँ किसी भेदभाव के बग़ैर कोई भी जाकर खा सकता है. और अपने इस पूरे उद्यम में मोइन मीर बड़ी उदारता से प्लोटिनस के दार्शनिक आलेखों के संग्रह ‘द एनीयाड्स’ से तमाम उद्धरण देते हुए चलते हैं, जो ‘एकात्मवाद’ के उनके दर्शन को तो उजागर करता ही है, कई मायनों में जो उपनिषदों, तौहीद और ‘बिग बैंग’ के सिद्धांतों के क़रीब ले जाता है.

हालाँकि, उजली और साफ़-शफ़्फ़ाफ़ छवियों के पीछे की स्याही को देखने-पहचानने और उन्हें रेखांकित करने से वह चूकते नहीं हैं. दूसरे विश्व युद्ध के ख़ात्मे के बाद खंडित बर्लिन का ज़िक्र करते हुए वह पश्चिमी बर्लिन में अमरीकियों और पूर्वी बर्लिन में साम्यवादी सोवियत संघ की दिलचस्पी और अधिकारों के नाम पर लोगों को बाँटने की नीतियों पर नज़र डालते हैं. और अपने सफ़र के दौरान तमाम इमारतों, पेंटिंग्ज़, तारों, पेड़ों और नदियों के प्रवाह में प्लोटिनस के ‘एकतात्मवाद’ का सार महसूस करने के बावजूद, वह नफ़रत की उस भावना को पूरी तरह से नज़रअंदाज नहीं कर सके हैं, जिसके पैदा होने की वजहें भी दरअसल वही हैं, जो उन्हें आपस में बाँधे रखने का भी कारक हैं, जो उन्हें एकजुट किए रहती हैं – धर्म, संस्कृति और दर्जा. यहाँ अंतोन चेख़व के हवाले से वह कहते हैं – “प्यार-मोहब्बत, भाईचारा, आदर और दोस्ती जैसी भावनाएं भी लोगों को उतना एकजुट नहीं करते जितना कि किसी चीज़ के प्रति सामूहिक नफ़रत की भावना.”

तमाम जगहों पर जाना और अपनी निगाहों से देखी हुई चीज़ों के रंगों, उनकी बनावट और बुनावट का लफ़्ज़ों में बयान करना शायद बहुत मुश्किल काम नहीं मगर मोइन मीर जिस करुणा भाव से इंसानों और इंसानी किरदारों की पड़ताल करते और हमें बताते हैं, वर्तमान से जोड़ते हुए अतीत की प्रासंगिकता का जैसा बयान करते हैं, वह अतुलनीय और असरदार मालूम होता है. धर्म, जाति, नस्ल और वर्ग-भेद जैसे मसलों की मौजूदगी के बावजूद आपसी एकता के मनुष्य के किरदार को मज़बूत बनाता है. और उनके सफ़रनामे से हासिल तमाम तत्वों में ये कुछ ऐसे हैं, जो किताब को दिलचस्प, पठनीय और महत्वपूर्ण बनाते हैं. अरस्तू, प्लेटो और प्लोटिनस जैसे दार्शनिकों के बारे में जानने और फ़लसफ़े की समझ रखने वाले पाठकों को यह किताब यक़ीनन और समृद्ध करने वाली है, लेकिन जो इससे वाक़िफ़ नहीं, उन्हें भी यह नीरस तो हरगिज़ नहीं लगेगी, पढ़ने की गति ज़रूर थोड़ी धीमी हो सकती है.

सच तो यह है कि किताब में जगह-जगह दिए गए ‘द एनीयाड्स’ के तमाम उद्धरणों ने मुझे भी कई बार दुविधा में डाला और उनका मर्म-मंतव्य समझने के लिए मुझे ठहरना पड़ा. फिर भी, यह पढ़ना-जानना भला लगता है कि ‘ग्लोबल विलेज’ कही जाने वाली हमारी दुनिया में धर्म, विज्ञान और रहस्यवाद के तमाम सिद्धांतों-मान्यताओं के चलन के बावजूद एकता के सिद्धांत का महत्व और इनकी ज़रूरत बची हुई है. ये पुराने नहीं पड़े, अब भी प्रासंगिक है.

मुमकिन है कि यह किताब पढ़ते-पढ़ते आप ख़ुद मोइन मीर के तजुर्बों को दोहराने का मन बनाने लगें पर इतना तो तय कि किसी फ़लसफ़ी के नक़्श-ए-पा पर चलते हुए उसके आख्यान में गल्प-कथा जैसा रस और उत्सुकता जगाने वाली ऐसी तासीर की दूसरी मिसाल खोजने में मुश्किल होगी.

किताब | द मॉनेस्ट्री ऑफ़ सॉलिट्यूड
लेखक | मोइन मीर
प्रकाशक | रोली बुक्स

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