बायलाइन | मुग़लसराय में मुग़ल है तो मड़ुवाडीह में का!

  • 1:37 pm
  • 10 January 2021

अपने यहां एक तबका है जिसे शहरों-स्टेशनों का नाम बदलने में मुक्ति दिखाई देती है. एक और तबका ऐसा भी है जिसे सीरियलों के नाम पर ऐतराज़ है. ऐसे लोगों के ऐतराज़ की वजहें एक ही हैं – उन्हें समाज पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव की चिंता खाए जा रही है. मुग़लसराय के नाम में मुग़लों की बू है तो फिर मड़ुवाडीह में! ख़लीलाबाद को संतकबीरनगर बना डाला चलो उनकी मर्ज़ी मगर नौगढ़ में ऐसी क्या ख़राबी है कि उसे सिद्धार्थनगर कहना ज़रूरी हो! ऐसी तवज्जो के बग़ैर कबीर या सिद्धार्थ के मान में कौन-सी कमी छूटी जा रही थी जो अब जा के पूरी हुई!

आज सवेरे भर फ़िल्म विकास परिषद के चेयरमैन (और कॉमेडियन) राजू श्रीवास्तव के बयान पर नज़र पड़ी, जिसमें उन्होंने मिर्ज़ापुर वेब सीरीज़ का नाम बदलने को कहा है. बक़ौल राजू, इस सीरीज़ से मिर्ज़ापुर की बदनामी हुई है, और इसे देखने से ऐसा लगता है वहां के लोग क्रिमिनल हैं, रेपिस्ट हैं, और वहां दिन भर गोलियां चलती रहती हैं.

मैंने यह सीरीज़ नहीं देखी है. मिर्ज़ापुर देखा है. मिर्ज़ापुरी कजरी सुनी है. वहाँ के पहाड़ और झरने देखे हैं. गंगा किनारे बैठकर मंदिरों से आती घंटियों की आवाज़ सुनी है. कुछ नायाब मिर्ज़ापुरी लोगों को जानता भी हूँ. और इन सब के भरोसे पर इतना ज़रूर जानता हूं कि मिर्ज़ापुर नाम वाली कोई सीरीज़ या फ़िल्म देखकर उनके बारे में मेरी राय नहीं बदलने वाली.

यह बयान पढ़ने के बाद उनके चेयरमैन के ओहदे की बात याद हो आई वरना यूट्यूब ने तो अब तक उन्हें कॉमेडियन की तरह ही प्रोजेक्ट किया है. द्विअर्थी और भदेस क़िस्म के चुटकुले दोहराते जाने वाला कॉमेडियन. पर मुझे नहीं लगता कि उन्हें देखने-सुनने वालों ने कभी उनकी तुलना राजू गाइड से की होगी या कि राजू नाम वाले हर शख़्स को उनकी तरह का कॉमेडियन समझ लिया होगा.

‘एयरफ़ोर्स वन’ देख चुके बहुतेरे लोगों को मैं भी जानता हूं मगर जब कभी वे डोनाल्ड ट्रंप के बारे में बात करते हैं, उन्होंने हैरिसन फ़ोर्ड को हरग़िज़ याद नहीं किया. रामायण सीरियल से पहले बनी कितनी ही धार्मिक फ़िल्मों में दारा सिंह ने हनुमान की भूमिका की. उनका डीलडौल इसमें बड़ा मददगार रहा. दारा सिंह फ़िल्मी पर्दे पर मगर रुस्तम, सिकंदर और हरक्युलिस बने, टॉर्जन और डाकू मंगल सिंह भी.

मार्क टुली ने अपनी किताब ‘नो फ़ुल स्टाप्स इन इंडिया’ में ‘द रीराइटिंग ऑफ़ रामायण’ नाम से रामानंद सागर के टेलीविज़न सीरियल की शूटिंग पर जो रिपोर्ट शामिल की है, मुझे यक़ीन है कि राजू श्रीवास्तव ने उसे पढ़ा नहीं होगा. पर्दे के किरदार, पहलवान और इंसान के तौर पर दारा सिंह की ज़िंदगी के फ़र्क को इस रिपोर्ट से भी समझा जा सकता है.

किसी खचाड़ा बस के माथे पर वॉल्वो लिख देने जैसे उसमें वॉल्वो की ख़ूबियां पैदा नहीं हो जातीं, मर्सिडीज़ के बंपर पर सोनू-मोनू द गड्डी लिखवाकर अगर जूते की तस्वीर बना दें तब भी उसे मर्सिडीज़ ही रहना है. दिल्ली के नाम पर बनी अभिषेक बच्चन और सोनम कपूर की फ़िल्म में सुना गया छत्तीसगढ़ी लोकगीत ‘ससुराल गेंदा फूल..’ दिल्ली में किसी को गाते हुए अब तक नहीं सुना. गामा नाम पाकर बड़ा हुआ आदमी गामा जैसा पहलवान कब हुआ है और नैनसुख के बारे में तो कहावत ही है.

पेड़े का नाम लेने पर किसी मथुरा की याद आती है तो किसी को बदायूं की और कुछ हैं जो दोनों को याद करते हैं. रेडियो पर शकील बदायूंनी या जाफ़र कव्वाल का नाम सुनकर या फिर सिनेमा के पर्दे पर ‘अरे मेरे बदायूं के लल्ला’ पुकारते शत्रुघ्न सिन्हा को सुनते वक़्त तो किसी को बदायूं का वह पुजारी याद नहीं आता, जो इन दिनों अपनी करतूतों के हवाले से टीवी और अख़बारों में सुर्ख़रू हुआ पड़ा है. राही मासूम रज़ा के हवाले से गाज़ीपुर को जानने वाले कितने लोग हैं, जो गाज़ीपुर का नाम आते ही राही को दरकिनार करके मुख़्तार अंसारी की याद करने लगेंगे.

वैसे मिर्ज़ापुर में यह जो मिर्ज़ा है न, यह लफ़्ज़ ही फ़ारसी ज़बान से आया है. मीर्ज़ा का लघुरूप. मायने हैं – मुग़ल जाति का व्यक्ति. शाही ख़ानदान के लोगों की दी जाने वाली उपाधि है. सोलहवीं सदी के मध्य में पहली बार अंग्रेज़ी में इस्तेमाल इस लफ़्ज़ के बारे में अंग्रेज़ी के कोश बताते हैं कि इसका अर्थ राजकुमार है और यह फ़ारसी के अमीर और ज़ाद शब्द युग्म का लघु रूप है.

यहाँ यह सब लिखने का मक़सद यह है कि चेयरमैन समेत उन तमाम लोगों को जिन्हें किसी सीरीज़ का नाम मिर्ज़ापुर रखे जाने पर इतना गहरा एतराज़ है, उन्हें सीरीज़ का नाम बदलने के लिए हल्ला करने की बजाय शहर का नाम बदलवाने के लिए कोशिश करनी चाहिए. इसके लिए उनके पास माक़ूल वजह भी होगी. ऐसा होने भर से कोई मोहल्ला या शहर बदनाम नहीं होने पाएगा. देश के लोग मिर्ज़ापुर के लोगों को शक की निगाह से देखना बंद कर देंगे. इस क़िस्म के किसी हो-हल्ले को पब्लिसिटी का स्टंट मानने की गुंजाइश भी नहीं रह जाएगी.

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