नाग बोडस | परफ़ेक्शन के हिमायती नाटककार

  • 4:03 pm
  • 19 December 2020

नारायण गणपत राव बोडस यानी नाग बोडस ने कहानियाँ लिखीं, उपन्यास भी लिखा मगर उनकी पहचान नाटककार के तौर पर ही है. अपने नाट्य लेखन से आधुनिक भारतीय रंगमंच को समृद्ध करने वाले नाटककार. ऐसे नाटककार जिनकी मान्यताएं उन्हें दूसरों से अलग करती हैं मगर जो रंगकर्म के लिए बहुत ज़रूरी मालूम देती हैं, चाहे वह रंग-भाषा का मसला हो या फिर नाट्य लेखन का.

रंगमंच और नाटककार के आपसी रिश्तों को वह बहुत अहमियत देते थे. उनकी मान्यता थी कि ‘‘नाटककार जब तक रंगमंच से अपने आपको नहीं जोड़ता, तब तक मंचीय नाटक लिखना उसके लिए संभव नहीं. मंचन का संबंध देखने-दिखलाने की क्षमता से है, जबकि लिखने का संबंध पढ़ने-सुनने से है.” रीडिंग टेक्स्ट और परफॉर्मेंस टेक्स्ट के बीच अंतर है. एक नाटककार का लिखा हुआ पाठ रीडिंग टेक्स्ट और मंच पर उतारने के लिए निर्देशक का तैयार किया हुआ पाठ परफॉर्मेंस टेक्स्ट है. नाग बोडस के सारे नाटक परफॉर्मेंस टेक्स्ट की शक्ल में होते.

वह मानते थे कि ‘‘नाट्य आलेख की पांडुलिपि मंचन के बाद ही सुधरती है.’’ उनका पहला नाटक ‘दलित’ इस बात को समझने का बढ़िया उदाहरण है. ग्वालियर की रंग संस्था ‘नाट्यायन’ ने इसका मंचन किया था. ‘दलित’ के पहले मंचन के बाद भी नाग बोडस ने इसमें कई संशोधन किए और बीस साल बाद साहित्य अकादमी के न्योते पर इस नाटक की आख़िरी बार संशोधित पांडुलिपि दिल्ली में पढ़ी गई.

परफ़ेक्शन के वह किस हद तक हिमायती थे, इसका एक और सबूत उनका चर्चित नाटक ‘पढ़ो फारसी, बेचो तेल’ है. अंग्रेज़ी में उन्होंने इसे ‘लर्न लैटिन बी अ मेसन’ नाम से लिखा. नाटक में प्रामाणिकता के लिए संस्कृति विभाग की सीनियर फेलोशिप के तहत उन्होंने ब्रिटेन और ऑस्ट्रिया का दौरा किया. वजह यह कि नाटक प्रसिद्ध ब्रिटिश-आस्ट्रियाई दार्शनिक लुडविग विट्गेंश्टाइन की ज़िंदगी पर आधारित था.

नाटक को बुनियादी तौर पर वह तभी पूरा मानते, जब उसका मंचन हो जाए. वह कहते थे कि ‘‘नाटक साहित्य होते हुए भी रंगमंच का हिस्सा है और हर पांडुलिपि अपने साथ एक रंगमंच लिए होती है. नाट्य आलेख लिखते समय ही अगर नाटककार मंच की ज़रूरतें पहचान ले, तो आलेख मंचीय रूप से भी सशक्त बनेगा.’’

वह ये भी मानते थे कि ‘‘रंगमंच से नाटक और नाटककार के घनिष्ठ संबंध होने चाहिए क्योंकि रंगमंचीय सामूहिकता का आधार आपसी विचार-विमर्श और सोच के विस्फोट यानी ब्रेन स्टोर्मिंग में है. नाटक और नाटककार का महत्व रंगभाषा की सृजन क्षमता के कारण है. एक नाटककार अपने आसपास के समाज में और आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों में नाटकीयता देखता है, तो वह सफलता और असफलता की फ़िक्र से ऊपर उठता है.’’

हिंदी नाटकों में खड़ी बोली के बजाय क्षेत्रीय बोलियों के इस्तेमाल के हिमायती नाग बोडस की राय थी,‘‘हिंदी के नाटककार के सामने खड़ी बोली को रंगोपयोगी भाषा बनाना अपने आप में एक चुनौती रही है. खड़ी बोली अमूमन किताबी भाषा है, इसमें वो जीवंतता या संगीतिकता नहीं है, जो क्षेत्रीय बोली में या मराठी भाषा में है. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में भी अधिकांशतः बृज भाषा का ही प्रयोग होता है. खड़ी बोली प्रधानतः गद्य की भाषा है. नाट्य रंगमंच को दृश्य काव्य भी कहते हैं, इसमें काव्य का तत्व है तो वहीं लय भी है. जबकि खड़ी बोली में किताबीपन होने के कारण वह लोगों के जीवन से नहीं जुड़ी है.’’

रंगमंच और हिंदी नाटक के विकास के बारे में वह सोचते थे – ‘‘हिंदी का नाटक विकसित करने की ज़िम्मेदारी रंग संस्थाओं और रंग निर्देशकों की भी है. हिंदी में रंग संस्थाओं को प्रोत्साहित करने और सक्रिय बनाने के लिए विभिन्न स्तर पर प्रतियोगिताएं ज़रूरी है. शासकीय अनुदान से चलने वाले रंगमंडलों को भी हिंदी के रंगमंच के विकास के लिए प्रयास करना चाहिए.’’

रंगमंच की चुनौतियों के सवाल पर उनका कहना था,‘‘शौकिया से व्यावसायिक रंगकर्म में पदार्पण करना भी ग़ैर महानगरीय रंगमंच की बड़ी समस्या है.’’ हिंदी नाटक और रंगमंच के भविष्य के प्रति हालांकि वह पूरी तरह से आश्वस्त थे. उनका मानना था,‘‘रंगमंच और नाटक को वापस आना है.’’ उनके इस विश्वास का आधार था – हमारी सामाजिक प्रवृति का सशक्त होना. सामाजिकता की प्रवृति के इसी दबाव से आने वाले समय में मध्यवर्गीय परिवारों में रंगमंच के प्रति झुकाव बढ़ेगा.

नाग बोडस उम्र भर सक्रिय रहे और रंगमंच पर काम करते हुए ही दुनिया से विदा हुए. 17 सितम्बर, 2003 को एक नाट्य कार्यशाला के लिए वह जयपुर थे जहाँ उनका निधन हो गया.

‘खूबसूरत बहू’, ‘नर-नारी उर्फ थैंकू बाबा लोचनदास’, ‘पढ़ो फारसी बेचो तेल’, ‘कृति-विकृति’, ‘टीन-टप्पर’, ‘दलित’, ‘कंपनी’, ‘बीहड़ में दावत’, ‘तौबा’, ‘लंपट’, ‘कट्टस’, ‘अम्मा तुझे सलाम’ जैसे चर्चित और विचारोत्तेजक नाटक उन्होंने लिखे. ‘पाजामे में आदमी’ उनकी कहानियों का संग्रह और ‘मेनिफेस्टो’ एकमात्र उपन्यास है.

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