बैकस्टेज शब्द पर्व | राकेश श्रीमाल की किताबों का विमोचन

प्रयागराज | बैकस्टेज शब्द पर्व में प्रसिद्ध कला चिंतक, समीक्षक और कवि राकेश श्रीमाल की लिखी और संपादित कला-संस्कृति की पुस्तकों का विमोचन हुआ. ये किताबें ‘मिट्टी की तरह मिट्टी’, ‘कलाचर्या’ और ‘कोरोना काल में चित्रकार’ हैं, संस्कृतिकर्मियों ने जिन पर चर्चा भी की. इलाहाबाद विश्वविद्यालय अतिथि गृह सभागार में यह आयोजन शनिवार को हुआ.

विमोचन के बाद कला समीक्षक राकेश श्रीमाल ने पुस्तकों की रचना प्रक्रिया के बारे में बताया और कहा कि लॉकडाउन में चित्रकार मित्रों से लिखवाने का ख़्याल आया. लॉकडाउन के दिनों में वे बाहर ज़रूर नहीं जा पा रहे थे मगर स्मृतियों में पीछे जा रहे थे. श्री श्रीमाल ने कहा चित्रकला बार-बार देखने की चीज़ है. यह नींद की तरह है, जहां हमें यह नहीं पता होता कि हम कहां हैं. हर जगह अर्थ की खोज नहीं करनी चाहिए.

जाने-माने समीक्षक प्रो.संतोष भदौरिया ने कहा कि ये किताबें कला की दुनिया के दरवाज़े खोलती हैं. इनमें वैविध्य है, बहुलता के रंग हैं. ये सत्ता प्रतिष्ठानों से सवाल करती हैं. और इनके कहने का ढंग मुकम्मल, अनूठा और विशिष्ट है. कला की दुनिया को जानने के लिए ये तीनों ही किताबें पाठ्य पुस्तक की तरह है.

प्रसिद्ध चित्रकार प्रो.अजय जैतली ने कहा कि कोई कला माध्यम क्राफ़्ट की तरह बाहर निकल कर ऊंचाई की ओर जाता है, ये इन किताबों से ज़ाहिर होता है. ‘मिट्टी की तरह मिट्टी’ में राकेश श्रीमाल और सीरज सक्सेना की कला दृष्टि समृद्ध संगीत जैसी है. पुस्तक में प्रश्न सार्वभौमिक हैं. और ये सवाल दरअसल पूरे कला जगत से हैं.

जाने-माने समीक्षक और कवि डॉ. बसंत त्रिपाठी ने कहा कि किताब ‘मिट्टी की तरह मिट्टी’ में सर्जना की दुनिया की आंतरिक परतों को बातचीत के ज़रिये साझा किया गया है. इस अद्भुत किताब का एक-एक पन्ना श्रीमाल जी ने गढ़ा है. इसमें हर प्रश्न पूर्ण है और हर उत्तर अपने आप में निबंध है. सीरज ने दार्शनिक की तरह जवाब दिए हैं. ‘मिट्टी की तरह मिट्टी’ किताब से आगे एक कलाकृति है. जो आनंद कलाकृति को देखते हुए होता है, इस किताब को पढ़ते हुए वैसा ही अनुभव होता है.

भाषा और साहित्य के विद्वान डॉ. बृजेश कुमार पांडेय ने कहा कि कला को लेकर ऐसी बातचीत दुर्लभ है. अब से पहले इस तरह की कोई किताब हिंदी में नहीं थी. कला और संवेदना की गहराई से लिखी इस किताब में कविता, समीक्षा, सृजन के विविध रंगों को एक साथ पढ़ने का आनंद मिलता है. यह किताब जीवन दर्शन के लिए अनुभूतियों और अनुभवों से संपन्न करती है.

सुपरिचित रंग समीक्षक डॉ.अमितेश कुमार ने कहा कि विविध सन्दर्भों को समेटे कला आस्वादन की ऐसी किताबें हिंदी में नहीं हैं. कला माध्यम को समझने के लिए यह आवश्यक किताब है. इनमें कला संसार को व्यापकता में दर्ज किया गया है. यह हिंदी समाज के लिए ज़रूरी किताब है.

जानी-मानी चित्रकार डॉ.जूही शुक्ला ने कहा कि किताब ‘मिट्टी की तरह मिट्टी’ में राकेश जी ने कलाकार के हृदय की परतें खोली हैं. यह संवाद की खूबसूरत शैली है, जिसमें आध्यात्मिकता और भौतिकता एक साथ दिखती है.

प्रो.संतोष भदौरिया, प्रो.अजय जैतली, डॉ.बसन्त त्रिपाठी, डॉ.बृजेश पाण्डेय, डॉ.अमितेश कुमार, डॉ.धनंजय चोपड़ा, डॉ.जूही शुक्ला और प्रवीण शेखर ने किताबों का विमोचन किया.

मेहमानों का स्वागत अमर सिंह, भास्कर शर्मा, सिद्धार्थ पाल, अनुज कुमार, अंजल सिंह, प्रत्यूष वर्सने, आलोक राज, रजनीश यादव ने किया. समारोह का संचालन डॉ. धनंजय चोपड़ा ने किया. प्रवीण शेखर ने आभार जताया.

इस मौक़े पर सुरेंद्र राही, शिव कुमार राय, संजय पांडे, गुरपिंदर रमन, धर्मेंद्र यादव, डॉ. ताहिरा परवीन, डॉ. शमेनाज़ शेख, डॉ. धीरेंद्र सिंह, शिवम सिंह, अजीत बहादुर, देवेंद्र सिंह, अजय केसरी, जुगेश कुमार गुप्ता, प्रदीप्त भी मौजूद रहे.

[प्रेस विज्ञप्ति]

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