एलबीटी की 70वीं वर्षगाँठ पर नृत्यनाटिकाओं की प्रस्तुति

  • 11:15 pm
  • 20 January 2021

भोपाल | रंगश्री लिटिल बैले ट्रूप की स्थापना की आज 70वीं वर्षगाँठ मनाई गई. इस मौक़े पर रंगश्री परिसर की गुल अभ्यासशाला में दो नृत्य-नाटिकाओं की प्रस्तुति हुई. ये नृत्य नाटिकाएं हाल ही में दो समानांतर कार्यशालाओं में तैयार हुईं.

विख्यात कवि राजेश जोशी की बहुचर्चित कविता ‘झुकता हूँ’ पर आधारित नृत्यनाटिका का केंद्रीय तत्व यही है कि झुकना मनुष्य का नैसर्गिक गुण है. जैसे खाना खाने, जूते के तस्मे बाँधने, कोई गिरी हुई चीज़ उठाने, पढने-लिखने आदि के लिए गर्दन, आँखें, कमर आदि झुकती हैं. ताकत और अधीनता की भाषा में झुकने या झुकाने को अधीनता या चापलूसी से जोड दिया गया है.

मनुष्य की गरिमा इसी में है कि वह किसी शक्तिशाली के सामने चापलूस आत्मा की तरह न झुके और न ही लज्जित-अपमानित होकर उसे नज़रें झुकानी पड़ें. कहावतें शब्दकोश के अर्थों से इतर अभिप्राय से ताल्लुक रखती हैं.

इस काव्यात्मक कथासूत्र को कोरियोग्राफ़र योगेन्द्र सिंह राजपूत योगी ने कुशलता के साथ नृत्यगतियों और नृत्यभंगिमाओं में गूँथा है. झुकने की हर क्रिया को समूहन में प्रस्तुत करते हुए वे इसे समाज के सरोकारों और प्रतिक्रियाओं के साथ जोड़कर रोचक बनाते हैं. प्रस्तुति सादगी पूर्ण है, जिससे संदेश के संप्रेषण में स्पष्टता बन सकी है.

नृत्यनाटिका में योगी के साथ पीयूष मिश्रा, मोनिका पाण्डेय, किरण मारण, दीया दीपक, सुनीता जायसवाल, सिमरन बहल, दिव्यांशी मेहरा और गौरव राठौर ने अंगसंचालन और भंगिमाओं से दर्शकों को प्रभावित किया.

सामाजिक सद्भाव, एकता, भाईचारे और पर्यावरण संरक्षण पर केंद्रित नृत्यनाटिका ‘आस्था’ अपने आप में एक अनूठी पहल थी. इसका कोई लेखक, निर्देशक या कोरियोग्राफ़र नहीं था. संस्था की महासचिव निरूपा जोशी ने कार्यशाला के लिए सामूहिकता के साथ नृत्यनाटिका तैयार करने के लिए कहा था .

कलाकारों ने सभी कुछ साझेदारी में ही किया. इस प्रस्तुति में तीन साधु हैं, जिन्हें विश्वास है कि उन्हें उनके सत्कर्मों से ही ईश्वर मिलेगा. इसलिए उनका एक ही मंत्र है – ‘ईश्वर हमको मिलेगा’.
दूसरी ओर एक सिद्ध संत हैं, जो ईशभक्ति में गहरे डूबे हैं और मोक्ष ही उनका लक्ष्य है.

तीनों साधु अलग-अलग गाँवों में जाते हैं तथा महिलाओं को झगड़ने से रोकने, दूसरे गाँव में ज़मीन को लेकर एक-दूसरे की जान लेने पर आमादा किसानों के झगड़े रोकने की कोशिश, बच्चों की प्रताड़ना में हस्तक्षेप की कोशिश करते हैं लेकिन हर जगह आहत-अपमानित करके निकाले जाते हैं. अपने देश का होने के बावज़ूद उन्हें बाहरी कह कर खदेड़ा जाता है. लेकिन वे हार नहीं मानते. अगले गाँव में वे पेड़ काटने वाले ग्रामीणों को रोकते और वृक्षों और पर्यावरण के लाभ से गाँव वालों को सहमत कर लेते हैं.

सिद्ध संत उन्हें मोक्ष का मार्ग बताकर कहता है कि ईश्वर की साधना और उसे पाने का वह मंत्र नहीं है जो तुम जपते हो. वह उन्हें साधना के लिए एक मंत्र देता है. ये तीनों साधु लौटकर वह भूल जाते हैं. वे पुनः संत के पास जाते हैं. रास्ते में एक नदी पडती है. वे अनजाने ही पानी के ऊपर चलते हुए संत के पास पहुंचते हैं. संत उनके जल पर चलने से चकित होकर स्वीकारता है कि तुम लोगों का मार्ग ही सही है. ईश्वर की बनाई प्रकृति और उसके बनाए संसार की सेवा ही ईश्वर प्राप्ति का सही मार्ग है. मनुष्य को मोक्ष से ज्यादा अपकर्मों से मुक्ति की ज़रुरत है.

इस नृत्यनाटिका के मंचन में गाँव की, वन की संरचना दिलचस्प रही. इसमें पट-परिवर्तन शैली का उपयोग किया गया. नृत्य में लोकनृत्य से अत्याधुनिक शैलियों का फ्यूज़न भी रोचक रहा.
विविध भूमिकाओं में प्रताप मोहंता, पद्मा सोनकर, दया निधि, उपेन्द्र महंत, मोनिका पांडे, सौलतयार खाँ, किरण मारण, लक्ष्मण सामंत, विपिन साल्वे मोण्टी, प्रतिभा मंजरी, संजय इंगले, और बाल कलाकार दान्या मेहता ने अपनी भूमिकाओं का बख़ूबी निर्वाह किया .

दोनों नृत्य नाटिकाओं के लिए अनुकूल प्रकाश परिकल्पना मैनुल ने की.

(प्रेस विज्ञप्ति)

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