रिपोर्ट | नाट्यशास्त्र के बहाने आज के सवालों पर विमर्श

बरेली | नाटक दृश्य काव्य है. और इसका उद्देश्य तरह-तरह की वेदनाओं से क्लांत दर्शकों का मनोरंजन है – यह देव, दानव और मानव सभी के लिए आमोद-प्रमोद का आसान साधन है. नाट्यते अभिनयत्वेन रूप्यते- इति नाट्यम्. हमारा लोक कितनी ही तरह की कहानियां रचता और सुनाता आया है, ऐसी कहानियां जिन्हें सुनते हुए हम बड़े होते हैं और फिर उन कहानियों की सच्चाई पर हमारा भरोसा बनता जाता है. नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति के बहाने सायन सरकार ने भरत मुनि की ज़िंदगी की कहानी की कल्पना की और मंच पर उतरी उनकी इसी कल्पना का नाम है – डू नॉट फ़ियर भरत मुनि इज़ हियर. जीतू राभा के साथ मिलकर उन्होंने इसे मंच पर जिया है.

विंडरमेयर थिएटर में कल शाम इसका मंचन हुआ. यों नाट्यशास्त्र रचे जाने के काल और उसके एक ही व्यक्ति द्वारा रचे जाने को लेकर कई मत हैं. मगर नाटक और संगीत दोनों ही विधाओं में यह सर्वसम्मत शास्त्र है और इसका श्रेय भरत मुनि को दिया जाता है. नाटक के आधारभूत तत्वों को समझने-ग्रहण करने के लिए यह आधार ग्रंथ है. और यह शास्त्र लोक की चेतना को ही नाटक का आधार बताता है.

और लोक आख्यान यह है कि स्वयं प्रजापति इसके प्रवर्तक हैं, ऋग्वेद से पाठ्य, सामवेद से गीत, यजुर्वेद से अभिनय और अथर्ववेद से रस के तत्व लेकर उन्होंने इस पंचम वेद का प्रादुर्भाव किया. सायन सरकार ने अपने नाटक में उन सभी तत्वों का हरसंभव समावेश किया है, जिनके मिलकर नाटक को पूर्णता मिलती है – रस, भाव, नृत्य, गीत, संगीत, आंगिक मुद्राएं. इसके साथ-साथ वह कहानियों की सच्चाई के मिथक को तोड़ते चलते हैं, तमाम समसामयिक सवालों पर विमर्श करते हैं और विषमताओं पर करारी चोट भी करते हैं.

यों तो ज्ञान प्रकाश है मगर बहुत-सी प्रचलित धारणाओं के लिए ख़तरा भी. सायन की परिकल्पना वाली इस कहानी में भरत शुद्र कुल में जन्मे ऐसे जिज्ञासु हैं, जो सीखने की अपनी ललक के चलते क़दम-क़दम पर वर्ण-व्यवस्था से प्रताड़ित होने के बावजूद हार नहीं मानते. वही वर्ण-व्यवस्था, जिसके चलते उन्होंने अपने पिता को खोया था और फिर बड़े होने के बाद ‘समुद्र मंथन’ के मंचन के बाद अपने भाई और गुरु को क्योंकि देखने वालों को लगा कि उनका नाटक तो ईश्वर के विरुद्ध है.

आश्रम में रहते हुए क़दम-क़दम पर बटुकों के हाथों उनके अपमान और हत्या की कोशिश के प्रसंग भी देखने वालों एकदम नए या अबूझ नहीं लगते. उन्हें हर क्षण लगता है कि एक जिज्ञासु की समस्याओं का समाधान करने आए भरत मुनि किसी और युग की नहीं, हमारे अपने समय की कहानी कह रहे हैं. नाटक के संवाद इस अनुभूति को और गहरा करते हैं – तुम तो बहुत अच्छे समय में जी रहे हो. हमारे समय में तो…

और चलते-चलते सायन एक और धारणा तोड़ते हैं, वह जीतू से कहते हैं कि नाट्यशास्त्र मेरे गुरु को समर्पित है, मेरी गुरुदक्षिणा. मेरे गुरु भरतमुनि.

विंडरमेयर में इस नाटक का दूसरा शो आज यानी 20 मार्च की शाम को सात बजे होगा.

कवर | prabhatphotos.com

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