रुद्रप्रयाग | तीन गाँव जहाँ डेढ़ सौ वर्षों से नहीं खेली गई होली

रुद्रप्रयाग | तीन गांवों में इस बार भी होली पर न ही अबीर-गुलाल उड़ा और न ही हुआ होली का हुड़दंग. अगस्त्यमुनि ब्लाक की तल्ला नागपुर पट्टी के क्वीली, कुरझण और जौंदला ऐसे गांव हैं, जहाँ डेढ़ सौ से भी अधिक वर्षों से होली नहीं मनाई जाती है. यहां न तो कोई होल्यार आता है और न ही गाँव के लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं.

ज़िले के मुख्यालय से क़रीब 30 किलोमीटर दूर बसे इन गांवों की बसाहट 17वीं सदी के मध्य की मानी जाती है. बताया जाता है कि क़रीब चार सौ वर्ष पहले जम्मू-कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार अपने यजमान और काश्तकारों के साथ यहां आकर बस गए थे. ये लोग अपनी ईष्टदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति भी अपने साथ लाए थे. मूर्ति को गांव में प्रतिष्ठापित कर दिया गया.

मां त्रिपुरा सुंदरी को वैष्णो देवी की बहन माना जाता है. क्षेत्र के लोगों का मानना है कि उनकी कुलदेवी को होली का हुड़दंग पसंद नहीं है, इसलिए वे सदियों से होली का त्योहार नहीं मनाते हैं. वे बताते हैं कि उनके गांवों में डेढ़ सौ वर्ष पूर्व होली खेली गई तो तीन गांवों में हैजा फैल गया, और जिसकी वजह से कई जानें चली गई. तब से आज तक गांव में होली नहीं खेली गई है.

हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर के लोक संस्कृति एवं निष्पादन केंद्र के पूर्व निदेशक व क्वीली गांव के निवासी डा.डीआर पुरोहित और शिक्षाविद् चंद्रशेखर पुरोहित बताते हैं कि गांव में उनकी 15 पीढ़ी हो गई हैं. उन्होंने जब से होश संभाला है, होली न खेलने की ही बात सुनी हैं.

पुरोहित पूर्वजों का हवाला देते हुए बताते हैं कि उनकी कुलदेवी को होली के रंग अच्छे नहीं लगते हैं, इसलिए यह त्योहार नहीं मनाया जाता है. जौंदला के अनूप नेगी का कहना है कि उन्होंने अपने दादा से सुना था कि एक बार कुछ लोगों ने होली पर एक-दूसरे पर रंग लगाया था, तो गाँव के लोगों का भारी नुकसान हुआ था. गांव में कई लोग बीमार हो पड़ गए थे.

कुरझण गांव के बुजुर्ग 95 साल के दाताराम पुरोहित और 88 वर्षीय बच्चीराम पांडे के मुताबिक गांव की बसाहट के बाद से ही होली नहीं खेली जाती है. गांव के आराध्य भेल देवता को होली का हुड़दंग पसंद नहीं हैं. ग्राम प्रधान प्रबोध पांडे बताते कि लोगों पुरखों की इन परंपराओं का निर्वहन करते आ रहे हैं.

कवर | कुरझण गाँव


अपनी राय हमें  इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.