हम अंधेरों से गुज़र कर रौशनी कहलाएंगे
कुछ लड़कियां ख़ुद को नीर भरी दुख की बदली मानते हुए दुख को अपनी नियति मानकर पस्त हो जाती हैं. लेकिन सब लड़कियां ऐसी कहां होती हैं! उनमें से कुछ ऐसी होती हैं, जो दुख के रूबरू खड़ी हो जाती हैं. ताल ठोंककर उनसे मुक़ाबिल होती हैं. उनसे लड़ती हैं. मुक़ाबला करती हैं. उनकी आंखों में आँखें डालकर उनका सामना करती हैं. कहती हैं कि हम टूट सकते हैं. पर झुक नहीं सकते.
दरअसल वो दुखों से संघर्ष करती है, अपने प्रतिद्वंद्वियों से लड़ती है और उनके सीनों किसी फांस-सी गड़ जाती है. वे बेचैनी में जितना उसे सताते हैं, वो उतनी और नुकीली होकर उनके सीने में गहरे तक धंसती जाती है.
विनेश फोगाट एक ऐसी ही लड़ाका है. योद्धा है.
वो एक ऐसी योद्धा है, जो कितने मोर्चों पर एक साथ लड़ती है. ज़िंदगी में दुखों से. खेल के मैदान में विपक्षी खिलाड़ियों से. और सड़कों पर दुराचारियों, अराजक तत्वों, पुलिस और सरकारी अमले से. पर हार किसी से नहीं मानती.
जिस तरह के संघर्ष, बाधाओं और चुनौतियों को पार कर वो ओलंपिक तक की यात्रा करती है और वहां अपराजेय जापानी पहलवान को हराकर फ़ाइनल तक पहुंचती है, वो यात्रा एक ऐसा प्रेरक आख्यान बन जाता है, जो आगे भविष्य में न जाने कितनी लड़कियों को प्रेरित करता रहेगा.
पदक किसी की योग्यता की एक पहचान भर ही तो है. गर पदक न भी मिले तो क्या फ़र्क़ पड़ता है. विनेश के ऐसे जीवट, साहस और संघर्ष पर एक तो क्या सैकड़ों पदक क़ुर्बान की किए जा सकते हैं.
ये लड़की एक खिलाड़ी भर नहीं है, अनवरत संघर्ष और अदम्य साहस का रूपक है. एक प्रेरक आख्यान है. अंधेरे में जलती लौ है. अन्याय के ख़िलाफ़ साहस का प्रतीक है. और इतनी सारी ख़ूबसूरत छवियों का एक सुंदर बिंब है.
इस लड़की को ढेर सारी मोहब्बत पहुंचे.
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