संवाद बुकशेल्फ़ | नए विषयों पर नई किताबें

संवाद बुकशेल्फ़ | ऐसे में जब शहरी लैंडस्केप से किताबों की दुकानें ग़ायब होती जा रही हैं और ऑनलाइन ठिकाने या प्रकाशक ही किताबें ख़रीदने का अकेला ज़रिया बनते जा रहे हैं, यह स्तंभ हिंदी और अंग्रेज़ी की ताज़ा छपी किताबों से आपको परिचय कराने और उनके बारे में मुख़्तसर जानकारी देने की कोशिश है. इनमें संपादक की पसंद की किताबें भी शामिल होंगी. पढ़ने वालों की सहूलियत के लिए किताबों की ऑनलाइन उपलब्धता के लिंक उनके शीर्षक में ही निहित हैं. -सं
सेबस्टियन एंड संस | संगीत
- मृदंग ऐसा वाद्य है, जो कर्नाटक संगीत का अभिन्न अंग है. इस वाद्य को विकसित करने का श्रेय जिन तमाम मृदंग वादकों को दिया जाता है, उनमें से कोई इसकी कारीगरी के बुनियादी तत्वों से वाक़िफ़ नहीं थे. मृदंग कलाकारों के अमूर्त ख़यालों को मूर्त करने के लिए इसे बनाने वाले कारीगरों को सिर्फ़ हुनर और संसाधन काफ़ी नहीं, स्वर के गहन बोध और समझ की क़ाबिलियत भी उनके प्रशिक्षण का हिस्सा है. संगीत-साधक टी.एम.कृष्णा की यह किताब उन्हीं गुणवान कारीगरों पर केंद्रित है, जिन्हें मृदंग की कला पर चर्चा करते हुए जिनके योगदान की अनदेखी की जाती रही है. जिन्हें मज़दूर या मरम्मत वाला बता कर दरकिनार कर दिया है, यह किताब उन्हीं की दुनिया में दाख़िल होने का दरवाज़ा है.
एक था जॉंस्कर | पर्यावरण

- लद्दाख में 13773 लोगों की आबादी वाला जॉंस्कर इलाक़ा अभी वहाँ के बाशिंदों की पुरातन जीवन शैली और संस्कृति के साथ बचा हुआ है तो इसलिए कि यह न तो हमलावरों की निगाह में पड़ा और न ही हिंदुस्तानी सैलानियों की. अजय सोडानी घुमक्कड़ हैं और कुदरत के पैरोकार भी. उनकी यात्राएं प्रकृति की पवित्रता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध होती हैं और इनकी शुरूआत इस जिज्ञासा के साथ होती है कि मनुष्य ने प्रकृति की इतनी विराट सभ्यता के ठीक मुक़ाबले पर अपनी यह सभ्यता खड़ी की तो आख़िर क्यों की, जिसमें हर तरफ़ सिर्फ़ क्षरण ही क्षरण है. हिमालय की बर्फ़ीली दुनिया के उनके इस सफ़रनामे में जितना रोमांच है, उतना ही इतिहास और संस्कृति की कथाएं औऱ उप-कथाएं भी हैं.
जनजातीय नवजागरण | आदिवासी अध्ययन
- इतिहास में जहाँ-तहाँ मिलने वाले जनजातीय नवजागरण के तथ्यों को जुटाकर यह किताब एक सैद्धांतिकी खड़ा करती है, साथ ही सूबाई नवजारण से जनजातीय नवजागरण को अलग करने के सूत्र भी प्रस्तावित करती है. औपनिवेशिक काल में जनजातियों के सामाजिक-धार्मिक आंदोलनों की पड़ताल करते हुए उनसे हासिल निष्कर्ष साझा करती है. यह किताब ऐसे तमाम सवालों के जवाब तलाश करने की कोशिश है कि कंपनी राज और अंग्रेज़ी राज के दौरान अमानवीय दमन के ख़िलाफ़ जनजातीय समुदाय किस तरह संगठित प्रतिरोध करते हैं और किस तरह अपने संघर्ष की रणनीतियों में बदलाव करते चले जाते हैं. विमर्श के ताने-बाने में तथ्यों को यह किताब बहुत सजग ढंग से पिरोती है.
हिमालय का इतिहास | इतिहास
- इंसानी रिहाइश और सभ्यता के केंद्र के तौर पर हिमालय का इतिहास अब बहुत हद तक अन्जाना ही है. मदन चंद्र भट्ट की यह किताब हिमालय में आबाद लोगों के उपेक्षित और ओझल सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं को सप्रमाण सामने लाती है, साथ ही भारत के इतिहास में हिमालय क्षेत्र के इतिहास को यथोचित जगह दिए जाने का प्रस्ताव भी करती है. लेखक ने हिमालय क्षेत्र में मौजूद शैलचित्रों, अभिलेखों, स्थापत्य और शिल्प अवशेषों, ताम्रपत्रों, सिक्कों जैसे पुरातात्विक साक्ष्यों के साथ ही प्राचीन ग्रंथों, लोक श्रुतियों और राजस्व अभिलेखों के विवरणों को आधार बनाकर विश्लेषण किया है और अपने आंकलन के हवाले से हिमालय के इतिहास का सिलसिलेवार ब्योरा प्रस्तुत किया है.
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जो ‘उठो लाल अब आंखें खोलो’... तक पढ़े हैं, जो क़यामत का भी संपूर्णता में स्वागत करते हैं