आर.के.नारायन के लिखे का इतना कायल हूँ कि मैसूर के सफ़र में उनकी किताबों के किरदार और ठिकाने भी तलाश करता हूँ. वहाँ किसी ठिकाने पर कॉफ़ी पीते हुए कितनी बार उनका लिखा हुआ ब्योरा याद करता रहा हूँ. अजमेर से गुज़रते हुए वहाँ ‘मालगुड़ी डेज़’ नाम का एक रेस्तरां पाकर इतना लहालोट हो गया था कि थोड़ी देर के लिए ठहरा भी. [….]