‘‘इंसानी ज़िन्दगी का दायरा सिर्फ़ इश्क़ और मुहब्बत तक महदूद नहीं. क्या इसके अलावा और बहुत से मसाइल और बहुत सी दिलचस्प और ग़ैर दिलचस्प चीज़ें नहीं हैं, जिनसे हम बावस्ता हैं? इन चीज़ों को छोड़कर हम खला-ए-महज में रहकर इश्क़ नहीं कर सकते.’’ [….]
राही मासूम रज़ा के अदबी सफ़र का आगाज़ शायरी से हुआ. 1945 में वह प्रगतिशील लेखक संघ से वाबस्ता हुए. सन् 1966 आते-आते उनकी ग़ज़लों-नज़्मों के सात संग्रह आ चुके थे. यही नहीं, सन् सत्तावन की एक सदी पूरी होने पर 1957 में लिखा हुआ उनका एपिक ‘अठारह सौ सत्तावन’ उर्दू और हिन्दी दोनों ही ज़बानों में ख़ूब मक़बूल हुआ. [….]
साहित्य में ऐसे कथाशिल्पी विरले ही हुए हैं, जिन्होंने अपने लेखन को दृश्य-श्रृव्य माध्यमों से जोड़कर, आम लोगों तक कामयाबी से पहुंचाया हो. साहित्य की तमाम विधाओं से लेकर जिनकी क़लम का जादू मीडिया, रेडियो, टेलीविज़न, वृत्तचित्र, फ़िल्म जैसे सभी माध्यमों में समान रूप से चला हो. मनोहर श्याम जोशी ऐसा ही नाम हैं. [….]