किसी आत्मीय को खो देना और उस विछोह को महसूस करते हुए कुछ कह पाना आसान हरगिज़ नहीं होता. शुक्रवार की शाम को क़ब्रिस्तान से लौटे प्रवीन के लिए भी यह सब कुछ याद करना यक़ीनन ख़ासा तकलीफ़देह रहा होगा. – सं. [….]
नारायण गणपत राव बोडस यानी नाग बोडस ने कहानियाँ लिखीं, उपन्यास भी लिखा मगर उनकी पहचान नाटककार के तौर पर ही है. अपने नाट्य लेखन से आधुनिक भारतीय रंगमंच को समृद्ध करने वाले नाटककार. ऐसे नाटककार जिनकी मान्यताएं उन्हें दूसरों से अलग करती हैं मगर जो रंगकर्म के लिए बहुत ज़रूरी मालूम देती हैं, चाहे वह रंग-भाषा का मसला हो या फिर नाट्य लेखन का. [….]
पंडित राधेश्याम कथावाचक की रंग यात्रा, उनकी शख़्सियत पर केंद्रित किताब ‘रंगायन’ 31 लेखों का संग्रह है. इसी महीने छपकर आई इस किताब में प्रेमचंद के लिखे ‘हिंदी रंगमंच और कथावाचक’, मधुरेश के ‘प्रेमचंद और राधेश्याम कथावाचक’, गोपीबल्लभ उपाध्याय के ‘राधेश्याम की नाट्य यात्रा’ और डॉ.हेतु भारद्वाज के लेख ‘जीवंत परंपरा के सूत्राधार राधेश्याम’ के साथ ही ख़ुद पंडित राधेश्याम के लिखे हुए तीन लेख भी शामिल हैं. [….]
वामिक जौनपुरी के ख़्वाब के तजुर्बे बहुत दिलचस्प भी हुआ करते. उन्होंने कई ऐसे ख़्वाबों के बारे में लिखा है जो हर रोज़ रात को वहाँ से शुरू होते, जहाँ सुबह आँख खुलने पर छूट गए थे. उनकी मशहूर नज़्म ‘भूका बंगाल’ के नज़्म होने के पहले कलकत्ते के होटल में भी उन्होंने ख़्वाब देखा था – एक ख़ौफ़नाक ख़्वाब. [….]