‘मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर/लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया’ उर्दू अदब में ऐसे बहुत कम शेर हैं, जो शायर की पहचान बन गए और आज भी सियासी, समाजी महफिलों और तमाम ऐसी बैठकों में कहावतों की तरह दोहराए जाते हैं. [….]
क़ासिम सुबह सात बजे लिहाफ़ से बाहर निकला और ग़ुसलख़ाने की तरफ़ चला. रास्ते में, ये इसको ठीक तौर पर मालूम नहीं, सोने वाले कमरे में, सहन में या ग़ुसलख़ाने के अंदर उस के दिल में ये ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो किसी को उल्लू का पट्ठा कहे. बस सिर्फ़ एक बार ग़ुस्से में या तंज़िया अंदाज़ में किसी को उल्लू का पट्ठा कह दे. [….]
इस समय सोशल मीडिया पर एक मीम खूब चल रहा है. ये कुछ इस तरह से है कि ‘भगवान सन् 2020 को डिलीट कर दो इसमें वायरस है.’ यूं तो इसे हल्के-फुल्के से परिहास के लिए बनाया गया होगा, पर इस हल्के हास्य के पीछे कितनी क्रूर सच्चाई छिपी है यह किसी से नहीं छिपा है. एक नए अनजाने वायरस की वजह से लाखों लोग जान गंवा चुके हैं [….]
‘मित्र संवाद’ केदारनाथ अग्रवाल और रामविलास शर्मा के पत्रों का संकलन है, जिसका सम्पादन रामविलास शर्मा और अशोक त्रिपाठी ने किया है. सन् 1992 में परिमल प्रकाशन से आई यह किताब यों तो मित्रों के बीच ख़तो-किताबत का दस्तावेज़ है, मगर निजी मसलों पर बातचीत के साथ ही समकालीन साहित्य, साहित्यकारों, पत्र-पत्रिकाओं के हाल-हवाल के साथ ही इसमें उनके साहस, उल्लास, ज़िंदादिली और संघर्ष का स्वर भी सुनाई देता है. [….]
पंजाबी का कोई और कवि हिन्दी में इतना मकबूल नहीं है, जितना कि पाश. विशाल हिन्दी समाज में पाश ग़ैर-हिन्दी भाषाओं के सर्वाधिक प्रिय कवि हैं. अख़बारों के लेखों से लेकर कितनी ही किताबों में पाश की कविताओं के हवाले से विचार और संदर्भ तय करने से तो यही लगता है. कितनी ही किताबें उनकी स्मृति को समर्पित हैं. [….]