राहों में पत्थर.
जलसों में पत्थर.
सीनों में पत्थर.
अक़लों में पत्थर.
आस्तानों में पत्थर.
दीवानों में पत्थर. [….]
कराची में कस्टम वालों का मुशायरा हुआ तो शायर लोग आओ-भगत के आदी दनदनाते पान खाते, मूछों पर ताव देते ज़ुल्फ़-ए-जानां की मलाएं लेते ग़ज़लों के बक़्चे बग़ल में मारकर पहुंच गए. उनमें से अक्सर क्लॉथ मिलों के मुशायरों के आदी थे. जहां आप थान भर की ग़ज़ल भी पढ़ दें और उसके गज़-गज़ पर मुक़र्रर-मुक़र्रर की मोहर लगा दें तब भी कोई नहीं रोकता. फिर ताना-बाना कमज़ोर भी हो तो ज़रा सा तरन्नुम का कलफ़ लगाने से ऐब छुपा जाता है. [….]