“उट्ठए जऔ पोती, भींसर भ गेल, मम्मी असगरे बना रहल छैथ, अहाँ सब सुतल रहू” छठ के मौक़े पर अकेले में भी दादी-अम्मा की आवाज़ें कानों में गूंजा करती हैं. मेरे लिए छठ का मतलब गांव का वह घर है, जहां आंगन में एक तरफ़ बनी रसोई में मिट्टी के चूल्हे पर सुबह चार बजे से ही ठेकुआ बनने लगता था. [….]
संस्कृति