बड़ा मुबारक होता है वो दिन जब कोई नया ख़ानसामां घर में आए और इससे भी ज़्यादा मुबारक वो दिन जब वो चला जाए! चूंकि ऐसे मुबारक दिन साल में कई बार आते हैं और तल्ख़ी-ए-काम-ओ-दहन की आज़माइश करके गुज़र जाते हैं. इसलिए इत्मिनान का सांस लेना, बक़ौल शायर सिर्फ़ दो ही मौक़ों पर नसीब होता है, इक तिरे आने से पहले इक तिरे जाने के बाद. [….]