बिजनौर | राजपुर नवादा गाँव में पाँच कमरों और बड़े से आंगन वाली वह हवेली काफ़ी जीर्ण-शीर्ण दिखने लगी है. हवेली में दाख़िल होने के दो रास्ते हैं और इन्हीं में से एक के माथे पर लिखा ‘रामजानकी भवन’ वक़्त की मार से हालांकि अभी बचा रह गया है. सौ साल से ज़्यादा पुरानी यह हवेली दुष्यंत के पुरखों की है. यहीं वह जन्मे और उनका बचपन भी यहीं बीता. [….]