चारपाई और मज़हब हम हिंदोस्तानियों का ओढ़ना-बिछौना है. हम इसी पर पैदा होते हैं और यहीं से मदरसा, ऑफ़िस, जेल-ख़ाने, कौंसिल या आख़िरत का रास्ता लेते हैं. चारपाई हमारी घुट्टी में पड़ी हुई है. हम इस पर दवा खाते हैं. दुआ और भीक भी मांगते हैं. कभी फ़िक्र-ए-सुख़न करते हैं और कभी फ़िक्र-ए-क़ौम, अक्सर फ़ाक़ा करने से भी बाज़ नहीं आते. [….]