बदायूँ की याद में कराची से चिट्ठी
उन दिनों जब मम्मन पहलवान बदायूंनी के पेड़ों के बारे में रिपोर्ट बना रहा था, उसके इतनी दूर जाकर असर करने का तो गुमान भी नहीं था. बल्कि यूट्यूब की उस रिपोर्ट पर आज कराची से ख़तनुमा लंबी टिप्पणी मिलने से पहले तक नहीं था. सैयद फ़िरोज़ आलम शाह ने वह रिपोर्ट देखकर कराची में मम्मन ख़ाँ के ख़ानदानियों का पेड़े वाला ठिकाना खोज निकाला और इसका श्रेय वह उस वीडियो रिपोर्ट को देते हैं. उनकी टिप्पणी दरअसल अपनी जड़ों और उनकी यादों से वाबस्ता रहने के बहानों का बयान भी है.
सैयद फ़िरोज़ आलम का ख़ानदान कभी बरेली के चक मोहल्ले में आबाद था, तो उनके घर के बुज़ुर्ग बदायूं के पेड़ों की शोहरत और ज़ाइक़े दोनों से ख़ूब वाक़िफ़ हैं. रोमन में लिखकर आई उनकी टिप्पणी यहाँ जस की तस दे रहा हूँ,
प्रभात सिंह साहब आपका बहुत-बहुत शुक्रिया. बहुत दिलचस्प इंटरव्यू, सरल उर्दू भाषा में आपने रिकॉर्ड किया है. बहुत अच्छा लगा.
मूल रूप से बरेली का हूँ. 60 साल से कराची में रहता हूँ. एक बार सिंध के दूरदराज़ इलाक़े के एक छोटे शहर के बाज़ार से गुज़र रहा था कि अचानक मिठाई की एक बड़ी दुकान का बोर्ड देख के रुक गया. बोर्ड पे लिखा था – बदायूँ के पेड़े. बचपन में सुना हुआ नाम बदायूँ याद आया और हमने वहीं दुकान पे ही कुछ पेड़े ख़रीदकर चखे. उन्हें चखने का असर यह हुआ कि अपने बचपन के दिनों में पहुँच गया.
दो किलो पेड़े ख़रीद कर कराची ले आया और अपनी माँ को खिलाया. वो कहने लगीं कि उनका स्वाद बिल्कुल वैसा ही है, शहद से भरपूर, जैसे कि बरेली में खाया करते थे. इस शहर का नाम टंडो आदम है और यह कराची से 215 किलोमीटर की दूरी पर है. फिर हम जब भी लॉन्ग ड्राइव पर निकलते तो ख़ासकर टंडो आदम जाते हैं और बदायूँ के पेड़े हम सब दोस्त ज़रूर ख़रीदते हैं.
किसी ने बताया भी था कि इतनी दूर क्यों जाते हो, वैसे पेड़े कराची में भी मिलते हैं, लेकिन हमें बहुत ढूंढने पर भी कराची में उनकी दुकान नहीं मिली. आप के इंटरव्यू से पता चला कि बदायूँ के पेड़े मम्मन ख़ाँ की ईजाद हैं. तो जब इस नाम से गूगल पर सर्च किया तो कराची में मम्मन ख़ाँ के बदायूँ के पेड़ों की दुकान का पता भी मिल गया और यूट्यूब पर उनके कई व्लॉग भी देख लिए. इनकी दुकान पुराने कराची के गोलीमार इलाक़े में है. उधर कुछ जाना नहीं हुआ लेकिन बदायूँ के पेड़ों की ख़ातिर अब प्लान कर के जाना पड़ेगा. मज़ीद ये भी पता चला कि बदायूँ के पेड़े की एक दुकान मरदान, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत में भी है.
शुक्रिया प्रभात सिंह आपका व्लॉग देख के हमें कराची में अपनी मनपसंद मिठाई का ठिकाना मिल गया. यह आपकी वजह से ही मुमकिन हुआ है.
सम्बंधित
मैसूर पाक वाले शहर में पनीर लाहौरी का ज़ाइक़ा
बायलाइन | मौलिक कॉमेडी की नज़ीर बन गए फ़ूड व्लॉग
मवाना | बालूशाही का ब्रांड मुखत्यार सिंह का नाम
अपनी राय हमें इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.
दुनिया जहान
-
बेसबब नहीं अपनी जड़ों की तलाश की बेचैनीः राजमोहन
-
और उन मैदानों का क्या जहां मेस्सी खेले ही नहीं
-
'डि स्टेफानो: ख़िताबों की किताब मगर वर्ल्ड कप से दूरी का अभिशाप
-
तो फ़ैज़ की नज़्म को नाफ़रमानी की दलील माना जाए
-
करतबी घुड़सवार जो आधुनिक सर्कस का जनक बना
-
अहमद फ़राज़ः मुंह से आग लगाए घूमने वाला शायर
-
फॉर्म या कंटेंट के मुक़ाबले विचार हमेशा अहम्
-
सादिओ मानेः खेल का ख़ूबसूरत चेहरा