लेखा-जोखा 2021 | रचनात्मक परिधि में युवा सृजन संवाद

प्रयागराज | बीते साल में युवा सृजन संवाद का डिजिटल मंच साहित्यिक, सांस्कृतिक और अकादमिक गतिविधियों का सक्रिय मंच बना रहा. रचनात्मक और वैचारिक गतिविधियों के संकल्प के साथ इस डिजिटल मंच पर साल 2021 में भी देश के अलग-अलग हिस्सों से क़रीब चालीस युवा और वरिष्ठ रचनाकारों की उपस्थिति दर्ज़ हुई. युवा सृजन संवाद ने ‘कविताई’, ‘विशेष व्याख्यान’, ‘किताबनामा’, ‘बतकही, ‘परिधि का विस्तार’ और ‘घर-गोष्ठी’ के नाम से कार्यक्रम आयोजित किए. ऑनलाइन आयोजनों के साथ ही ‘घर-गोष्ठी’ के तीन आयोजनों में पढ़ने-लिखने में दिलचस्पी रखने वालों ने शिरकत की.

सन् 2021 में हुए कविताई कार्यक्रम में नौ युवा रचनाकारों ने शामिल होकर कविता-पाठ किया. इसमें मिर्जापुर से गति उपाध्याय, दिल्ली से अनुपम सिंह, प्रयागराज से हरप्रीत कौर, लखनऊ से उषा राय, वर्धा से अमरेंद्र कुमार शर्मा, दिल्ली से जावेद आलम ख़ान, रांची से वंदना टेटे, दिल्ली से अशोक कुमार और लखनऊ से सुभाष राय ने अपनी कविताओं का पाठ किया. विविध भाव-बोध और भिन्न आस्वाद की इन कविताओं को ख़ूब सराहना मिली.

विशेष व्याख्यान’ के तहत इलाहाबाद के युवा आलोचक दिनेश कुमार ने ‘कथाकार रेणु का जन्मशती संदर्भ’, भोपाल से वरिष्ठ आलोचक, कवि और संपादक विजय बहादुर सिंह ने ‘कथा में किसान, संदर्भ: प्रेमचंद और रेणु’, अलीगढ़ से सुपरिचित आलोचक कमलानंद झा ने ‘कविता और किसान, संदर्भ: नागार्जुन’, दिल्ली से सुपरिचित आलोचक बजरंग बिहारी तिवारी ने ‘कविता में किसान: संदर्भ भक्ति काव्य’, बनारस से सुपरिचित आलोचक एवं कवि सदानंद शाही ने ‘मेरे राम का रंग मजीठ है; रैदास के जीवन और कविता पर संवाद’, रांची से सुपरिचित वरिष्ठ आलोचक रविभूषण ने ‘भारतीय कृषि का कार्पोरेटीकरण’, पंजाब से वरिष्ठ आलोचक और इतिहासविद् प्रो.चमनलाल ने ‘शहीद भगत सिंह की भारत संकल्पना’, दिल्ली से सुपरिचित आलोचक वैभव सिंह ने ‘उपन्यास: इतिहास और संस्कृति’ विषय पर अपना नज़रिया प्रस्तुत किया.

महाराष्ट्र से सुपरिचित मराठी हिंदी लेखक प्रो.दामोदर मोरे ने ‘डॉ. भीमराव अंबेडकर के सपनों का भारत’, बस्ती जनपद से वरिष्ठ कवि-आलोचक रघुवंशमणि ने ‘केदार की कविता: यथार्थ की परतें’, ग्वालियर से संस्कृतिकर्मी सुरेश तोमर ने ‘महामारी, स्त्री और नई चुनौतियां’, दिल्ली से वरिष्ठ आलोचक गोपेश्वर सिंह ने ‘नामवर सिंह की आलोचना दृष्टि: वाद-विवाद और संवाद‘, राजस्थान से सुपरिचित आलोचक रवि श्रीवास्तव ने ‘प्रेमचंद होने का अर्थ’, हिमाचल प्रदेश से गांधीवादी युवा आलोचक अव्यक्त ने ‘सत्य, प्रेम और करुणा की कसौटी पर राजसत्ता और हम लोग’ और दिल्ली से सुपरिचित आलोचक प्रो. गोपाल प्रधान ने ‘छायावाद: पढ़ने के सूत्र’ विषय पर व्याख्यान दिया. इन व्याख्यानों ने हमारे समय के संघर्ष और चुनौतियों को रेखांकित करने और उन्हें समझने में मदद की.

डिजिटल मंच पर बातचीत के बहुचर्चित कार्यक्रम ‘बतकही’ श्रृंखला में वरिष्ठ आलोचक गोपेश्वर सिंह से युवा अध्येता जगन्नाथ दुबे ने बात की, कथाकार किरण सिंह से युवा आलोचक अनुराधा गुप्ता ने, वरिष्ठ कथाकार महेश कटारे से सुपरिचित आलोचक प्रो. संतोष भदौरिया ने और सुपरिचित कथाकार भगवानदास मोरवाल से सुपरिचित आलोचक पूनम सिन्हा ने बातचीत की. बातचीत के केंद्र में रचनाकार और आलोचक का जीवन और उनकी रचनाधर्मिता रही. इस बातचीत के लिप्यंतरण के बाद इसके प्रकाशन की योजना पर काम चल रहा है.
‘परिधि का विस्तार’ एक अलग तरह का कार्यक्रम है, जिसमें तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए युवा साथी साहित्य की दुनिया को समृद्ध कर रहे हैं. इसी के तहत लखनऊ से दिव्यांग युवा कथाकार कंचन चौहान से यूएसए के युवा कथाकार दीपक मशाल ने बात की. पुष्पा और पद्मा नाम से ख्यात निष्ठा तथा चेष्टा से युवा कवयित्री नेहा नरूका और आरती चिराग़ ने बातचीत की. एक सुंदर दुनिया का सपना देखने वाली और अपने गांव में सावित्री बाई फुले नाम से पुस्तकालय संचालित करने वाली ममता सिंह से युवा कथाकार फरजाना महदी ने काफ़ी विस्तार से बातचीत की .

‘घर-गोष्ठी’ नाम शुरू की गई श्रृंखला में सुपरिचित कवि-आलोचक सदानंद शाही, वरिष्ठ कथाकार महेश कटारे तथा शिवमूर्ति से संवाद हुआ. इन घर-गोष्ठियों में शहर के युवा और वरिष्ठ साहित्यकारों की भी सक्रिय सहभागिता रही. रचनाकारों से हुई सवाल-जवाब और टिप्पणियों ने इन गोष्ठयों को विचारोत्तेजक बनाए रखा.

प्रगतिशील आंदोलन के वरिष्ठ साथी और अदब की दुनिया की नायाब शख़्सियत रहे ईश मधु तलवार और अली जावेद की स्मृति में सभा का आयोजन कर उनके रचनात्मक योगदान को याद किया गया. साथ ही प्रयाग से ताल्लुक रखने वाले ख्यातिलब्ध आलोचक और उर्दू अदब की दुनिया के बड़े नाम रहे अकील रिज़वी और शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी की पुण्यतिथि पर स्मृति सभा आयोजित हुई. कमला भसीन के जीवन और कर्म पर केंद्रित कार्यक्रम के साथ ही शहर की गंगा-जमुनी तहज़ीब को आजीवन जीने और संरक्षित करने वाले कामरेड ज़िया भाई और प्रसिद्ध इतिहासकार और संस्कृतिकर्मी प्रो.लाल बहादुर वर्मा को युवा सृजन संवाद ने बड़ी आत्मीयता से याद किया.

युवा सृजन संवाद के साथियों की संचालन समिति की एक बैठक में यह प्रस्ताव भी सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ है कि वर्ष 2022 में प्रो.अक़ील रिज़वी और शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी पर एक व्याख्यानमाला की शुरुआत की जाएगी.


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