कहानी एक लफ़्ज़ की | रोटी

संस्कृत के शब्द रोटिका से बना है – रोटी. और यही दूसरी चीजों के साथ मिलकर रोटी को अलग पहचान देती है – पाव रोटी, डबल रोटी, ख़मीर रोटी, मीठी रोटी, मिस्सी रोटी, रुमाली रोटी या फिर तन्दूर में पककर तंदूरी रोटी. हिन्दुस्तानी ज़बान के साथ ही दूसरी ज़बानों में रोटी का चलन है मसलन मलेशिया और इण्डोनेशिया में.
पराठा हिन्दुस्तानी ज़बान का है मगर नान फ़ारसी. रोटी की तरह ही पूड़ी भी संस्कृत के पूरिका से आया है. उच्चारण में थोड़े हेरफेर के साथ हिन्दुस्तान की सभी ज़बानों में यह पूरी, पोरी या पूड़ी है. जॉर्जिया वाले अलबत्ता रोटी को ही पूड़ी कहते हैं.
फ़ारसी के लफ़्ज़ रोज़ी के साथ मिलकर आमफ़हम शब्द युग्म रोज़ी-रोटी बन जाता है – आजीविका. यों अलग-अलग या मिलकर भी दोनों ही दुनिया की सबसे ताक़त शै हैं.
तभी तो बोलचाल और व्यवहार में कितने ही अलग-अलग अर्थों से बरती जाती है, समृद्धि के बयान में और ग़ुरबत के हाल में भी – रोटी-बेटी का रिश्ता, रोटी को मोहताज़, रोटी का मारा, रोटी का रोना, रोटी देना, चुपड़ी रोटी, रोटी सेंकना, रोटी-कपड़ा और मकान…
शायर नज़ीर बाक़री फ़रमाते हैं,
खड़ा हूं आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझ को.
अहमद जहाँगीर का एक शेर है,
ख़ुश्क रोटी तोड़नी है सर्द पानी चाहिए
क्या किसी गिरजे की कुंडी खटखटानी चाहिए.
(शेर रेख़्ता की जानिब से)
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