कहानी एक लफ़्ज़ की | तराज़ू

  • 10:26 am
  • 4 September 2020


फ़ारसी ज़बान से आया यह एक शब्द अपने बड़े काम का है. यों रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इसका तसव्वुर वह तुला है, जिसके एक पलड़े पर बाट होते हैं और दूसरे पर अक्सर जीने के लिए ज़रूरी साज़ो-सामान. सब्ज़ी की दुकान पर छोटा-सा और आढ़त पर इतना बड़ा कि समूचा आदमी भी उस पर तोला जा सके. हालांकि ज़माना ख़ास क़िस्म के आदमियों को भी तराज़ू के पलड़े पर बैठे देखता आया है. नफ़ीस क़िस्म का तराज़ू होता तो सुनार की दुकान में भी है. या फिर न्याय की देवी के हाथ में.

मगर दार्शनिकों की कहन में तराज़ू ने ख़ासे गूढ़ अर्थों के साथ जगह पाई है. देखिए कबीर दास क्या कह गए हैं,
बोली एक अनमोल है जो कोई बोलै जानि
हिये तराज़ू तौलि के तब मुख बाहर आनि.

और बक़ौल साहिर लुधियानवी,
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं

सम्बंधित

कहानी एक लफ़्ज़ की | दुकान

कहानी एक लफ़्ज़ की | रसीद

कहानी एक लफ़्ज़ की | रोटी


अपनी राय हमें  इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.