कहानी एक लफ़्ज़ की | आब
फ़ारसी का यह एक लफ़्ज़ इतना अर्थपूर्ण है कि छोटी-मोटी पोथी लिखी जा सकती है और उपमा के तौर पर इसका इस्तेमाल इसे गहरे नए अर्थ देता है. ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरत में शुमार यह शै आब एक लिहाज से ज़िंदगी देता है, फिर ज़िंदगी भर गढ़ता है. फ़िलहाल सौरभ शेखर का यह शेर ग़ौर करें – मिला न खेत से उस को भी आब-ओ-दाना क्या/ किसान शहर को फिर इक हुआ रवाना क्या.
आब का सबसे ज्यादा समझा जाने वाले अर्थ तो पानी है – सलिल, वारि, नीर, जल. यह पसीना भी है, फूलों का प्राकृतिक रस, अर्क और शराब भी है. यह ताज़गी है, कांति, शोभा, चमक, उत्कर्ष, प्रतिष्ठा और धार भी है. इज़्ज़त, कीर्ति, यश, नेकनामी, सतीत्व, इस्मत के अर्थ वाला लफ़्ज़ आबरू बना है. आबदार का मतलब उज्जवल है, चमकदार, धारदार, इज़्ज़त वाला और पानी पिलाने वाला है और आबकार के मायने हैं – मद्य-व्यवसायी, शराब का कारोबारी. वो जो महकम-ए-आबकारी है न! वह भी इसी ‘आब’ से अर्थ पाता है – मद्य विभाग.
शायराना फ़लसफ़ा हो तो आलम ख़ुर्शीद इस तरह बरतते हैं –
कुछ चमकता सा तह-ए-आब नज़र तो आए
डूबने के लिए गिर्दाब नज़र तो आए.
और धार के अर्थ में मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम –
तिरी तेग़ की आब जाती रही है
मिरे ज़ख़्म पानी चुराए हुए हैं.
दिलावर अली आज़र ने कहा –
बना रहा था कोई आब ओ ख़ाक से कुछ और
उठा लिया फिर अचानक ही चाक से कुछ और.
या कि फ़हीम शनास काज़मी के नज़रिये से –
बदन को ख़ाक किया और लहू को आब किया
फिर इस के ब’अद मुरत्तब नया निसाब किया.
और शाहिद मीर फ़रमाते हैं –
कहीं फ़रेब न निकले पुकार दरिया की
हम आब समझे हैं जिस को ग़ुबार-ए-आब न हो.
आबदार ख़ाना प्याऊ, आबजू नदी, चश्मा, आबख़ुर्द प्रारब्ध, भाग्य, आबला फफोला, आबे हयात अमृत, आबे सुर्ख़ शराब, आबे रवाँ बहता पानी, बहुत बारीक मलमल, आबोदाना जीविका, दानी-पानी, आबोहवा जल-वायु, आबोताब चमकदमक, धूमधाम, आब गर्दिश रोज़ी, जीविका, आबोरौग़न चिकनी-चुपड़ी बातें, आबपाशी सिंचाई.
और यही ‘आब’ जब फ़ारसी की गिनती ‘पंज’ यानी पाँच में मिलता है तो पाँच दरियाओं वाले सूबे को नाम मिलता है – पंजाब.
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