देश और दुनिया में लाखों लोगों के दिलों पर राज़ करने वाली वह आवाज़ ख़ामोश हो गई, मुल्क़ का आम आदमी भी जिसमें ख़ास तरह का अपनापन महसूस करता था. थोड़े वक़्त के लिए ही सही, अपना ग़म-ओ-रंज वह भूल जाता था. ऐसी दिलकश आवाज़ और बेलौस अंदाज़ के [….]
कथक गुरु बिरजू महाराज से प्रवीण शेखर की यह बातचीत 17 मई, 1995 को अमर उजाला के इलाहाबाद संस्करण में छपी. इसे पढ़कर संस्कृति के प्रति उनके सरोकार और नज़रिये की झलक तो मिलती ही है, यह भी मालूम होता है कि टेलीविज़न के ज़रिये फैल रही अपसंस्कृति के बारे में तो वह फ़िक्रमंद थे ही, संगीत सभाओं में ताली भर पीटने वाले श्रोताओं पर भी उनकी निगाह लगी हुई थी. [….]