नई पीढ़ी के निबंध के विषयों में शायद न भी हो मगर कुछ बरस पहले तक स्कूल की अंग्रेज़ी की किताब में ‘द पोस्टमैन’ और हिन्दी की किताब में ‘डाकिया’ पर निबंध शामिल हुआ ही करते थे. किताबों के बाहर कमोबेश हम सब की ज़िंदगी में भी [….]
इतिहास गवाह है कि क्रांतिकारी बनी-बनाई लीक पर कभी नहीं चले. जहां वे चलते हैं, राहें खुद ब खुद बन जाती हैं. क्यूबा की क्रांति के सितारे अर्नैस्तो चे ग्वेरा ऐसे ही लोगों में रहे. पेशे से डॉक्टर चे ग्वेरा अपनी पढ़ाई और प्रशिक्षण के दौरान पूरे लातिनी अमेरिका में घूमे. [….]
‘मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर/लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया’ उर्दू अदब में ऐसे बहुत कम शेर हैं, जो शायर की पहचान बन गए और आज भी सियासी, समाजी महफिलों और तमाम ऐसी बैठकों में कहावतों की तरह दोहराए जाते हैं. [….]
अपने बेशतर लेखन में मध्य-निम्न मध्यमवर्गीय मुस्लिम समाज का यर्थाथपरक चित्रण करने वाले शानी पर ये इल्जाम आम था कि उनका कथा संसार हिंदुस्तानी मुसलमानों की ज़िंदगी और उनके सुख-दुख तक ही सीमित है. और हां, शानी को भी इस बात का अच्छी तरह एहसास था. [….]
साम्प्रदायिकता आज देश के लिए भयानक चुनौती बनकर सामने है. साम्प्रदायिकता राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए विष बेल की तरह है. इसका ज़हर धीरे-धीरे हमारे बुद्धिजीवियों में प्रवेश कर रहा है. रोमानी अतीत प्रेम के नाम पर हम पुनरुत्थानवाद की ओर पलायन कर रहे हैँ. [….]
राकेश की ज़िंदगी एक खुली किताब रही है. उसने जो कुछ लिखा और किया – वह दुनिया को मालूम है. लेकिन उसने जो कुछ जिया – यह सिर्फ़ उसे मालूम था ! अपनी सांसों की कहानी उसने डायरियों में दर्ज की है. [….]
ख़बर है कि अंग्रेज़ी का नवजात शब्द ‘ओके बूमर’ आने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बहस की दिशा और दशा तय कर सकता है. ‘ओके बूमर’ शब्द का इस्तेमाल इन दिनों नई उम्र के युवा तब करते हैं, जब कोई उन्हें काफी देर उपदेश दे चुका हो. इसका सबसे नजदीकी हिन्दी अनुवाद -“अब बस करो बुढ़ऊ ..!” हो सकता है. [….]
हबीब तनवीर पाश्चात्य नाट्य परंपरा की बहुत गहरी जानकारी रखने वाले निर्देशक थे और उससे उनका निकट का परिचय भी था. अपना रंग मुहावरा तलाशते हुए या अपने रंगमंच की भाषा तय करते हुए उन्होंने अपनी जड़ें अपनी परंपरा में जमाई, लेकिन अपने आप को सीमित नहीं किया. [….]