‘राहों के पेचो ख़म में गुम हो गई हैं सिम्तें/ ये मरहला है नाज़ुक ताबाँ संभल-संभल के.’ ताबाँ के मायने नूरानी यानी दीप्त के हैं और पेचदार भी. ‘ताबाँ’ के क़लाम में इसके दोनों मायने नुमाया होते हैं. उनकी शायरी में सादा बयानी तो है ही, एक अना भी है. [….]
उनकी शायरी की सोहबत का एक फ़ैज़ तो यही है कि ‘उन्हीं के फ़ैज़ से बाज़ार-ए-अक़्ल रौशन है..’. फ़ैज़ सच्चे वतनपरस्त थे और दुनिया भर के जनसंघर्षों के साथ खड़े होने के हामी भी. साम्राज्यवादी ताकतों ने जब भी दीगर मुल्कों को साम्राज्यवादी नीतियों का निशाना बनाया, फ़ैज़ ने उन मुल्कों की हिमायत में अपनी आवाज़ उठाई. [….]
मंटो ने डेढ़ सौ से ज्यादा कहानियां लिखीं, व्यक्ति-चित्र, संस्मरण, फ़िल्मों की स्क्रिप्ट और डायलॉग, रेडियो के लिए ढेरों नाटक और एकांकी, पत्र, कई पत्र-पत्रिकाओं में कॉलम लिखे, पत्रकारिता की. कविता को छोड़ दें, तो उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में लिखा है. उनकी तमाम रचनाओं पर ख़ूब बात हुई मगर उनके ख़तों पर बात कम ही हुई. [….]
लाहौर की उम्र का हर पन्ना इतिहास ने लिखा है. एक तरह से कहें तो इतिहास का दूसरा नाम लाहौर है. इसकी उम्र करीब 1500 साल है. यों पौराणिक कहानियों के हिसाब से यह हजारों साल पुराना है. कहा जाता है कि अयोध्या के राजा राम के पुत्र लव ने इसे बसाया था और दूसरे पुत्र कुश ने आज की भारत-पाक सरहद के पास बसा कसूर नगर बसाया था, मगर यह सब किंवदंतियाँ हैं. [….]